Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९४ आत्मधर्म : १५ :











सिंहनुं एक नानुं बच्चुं हतुं. भूलथी ते बकरीना टोळामां भळी गयुं, ने पोतानुं सिंहपणुं
भूलीने पोताने बकरुं ज मानवा लाग्युं. एकवार बीजा सिंहे तेने दीठुं, ने तेने तेना सिंहपणानुं
भान कराववा सिंहनाद कर्यो. सिंहनी त्राड सांभळतां ज बकरां तो बधाय भाग्या, पण आ
सिंहनुं बच्चुं तो निर्भयपणे ऊंभुं रह्युं, सिंहना अवाजनी बीक एने न लागी. त्यारे बीजा सिंहे
तेनी पासे आवीने प्रेमथी कह्युं–अरे बच्चा! तुं बकरुं नथी, तुं तो सिह छो? देख, मारी त्राड
सांभळीने बकरां तो बधा भयभीत थईने भाग्या, ने तने केम बीक न लागी? –केमके तुं तो
सिंह छो.....मारी जातनो ज तुं छो, माटे बकरानो संग छोडीने तारा सिंह–पराक्रमने संभाळ,
वळी विशेष खातरी करवा तुं चाल मारी साथे, ने आ स्वच्छ पाणीना झरामां तारुं मोढुं जो!
विचार कर के तारुं मोढुं कोना जेवुं लागे छे? मारा जेवुं (एटले के सिंह जेवुं) लागे छे के बकरा
जेवुं? हजी विशेष लक्षण बताववा सिंहे कह्युं के तुं एक अवाज कर......अने जो के तारो अवाज
मारा जेवो छे के बकरा जेवो? सिंहना बच्चाए ज्यां त्राड पाडी त्यां तेने खातरी थई के हुं सिंह
छुं; पाणीना स्वच्छ झरणामां पोतानुं मोढुं जोईने पण तेने स्पष्ट देखाणुं के हुं तो सिंह छुं.
भ्रमथी ज सिंहपणुं भूली, मारी निजशक्तिने भूलीने मने बकरा जेवो मानी रह्यो हतो, आ तो
एक दृष्टांत छे; तेम धर्मकेसरी एवा सर्वज्ञ परमात्मा पोते सर्वज्ञ थईने दिव्यवाणीरूपी
सिंहनादथी तने तारुं परमात्मपणुं बतावे छे; जेवा अमे परमात्मा छीए एवो ज तुं परमात्मा
छो; बंनेनी एक ज जात छे. भ्रमथी तें पोताने पामर मान्यो छे ने तारा परमात्मपणाने तुं
भूल्यो छो.