नाश थई जाय छे. आ रीते परमात्माने ओळखीने उपासना करनार पोते पण परमात्मा थई
जाय छे.
रागादिनो के अल्पज्ञतानो आदर काढी नांख्यो, ने पूर्ण सामर्थ्यवान ज्ञानस्वभावनो ज आदर
कर्यो; ए रीते ज्ञानस्वभावनो ज आदर करीने पोते पोताना स्वभाव तरफ झुकी जाय छे. –ते ज
अरिहंत–अने सिद्ध परमात्मानी खरी उपासना छे; अने ए रीते ज्ञानस्वभाव तरफ झुकीने तेमां
एकाग्र थतां थतां ते पोते पण परमात्मा थई जाय छे.
(अरिहंत–सिद्धभगवाननी) खरी उपासना थई. एकला रागवडे भगवाननी भक्ति कर्या करे ने
ते रागवडे लाभ माने तो ते खरेखर सर्वज्ञ भगवाननी उपासना करतो नथी पण रागनी ज
उपासना करे छे; सर्वज्ञनी उपासना करवानी रीत ते जाणतो नथी. ‘सर्वज्ञनी नीकटता’ करीने
तेनी उपासना करे के अहो! आवी सर्वज्ञता! –जेमां राग नहि, अल्पज्ञता नहि, परिपूर्ण ज्ञान
ने आनंदनुं ज जेमां परिणमन छे; –मारा आत्मानो पण आवो ज स्वभाव छे; –एम प्रतीत
करीने, ज्ञानस्वभावनुं बहुमान करीने अने रागादिनुं बहुमान छोडीने ज्यां पोते पोताना
ज्ञानस्वभावमां तन्मय थयो त्यां भाव अपेक्षाए भगवान साथे एकता थई, जेवो भगवाननो
भाव छे तेवो भाव पोतामां प्रगटयो, एटले तेणे भगवाननी उपासना करी. आ रीतथी जे जीव
सर्वज्ञ परमात्मानी उपासना करे छे ते पोते परमात्मा थई जाय छे.
जीतेन्द्रिय छे, अने ते ज केवळज्ञानीनी परमार्थस्तुति छे, जुओ, आमां केवळज्ञानी तरफ तो लक्ष
पण नथी, आत्मा तरफ ज लक्ष छे, छतां तेने केवळज्ञानीनी स्तुति कही छे. पहेलांं ते तरफ लक्ष
हतुं ने तेना द्वारा निजस्वरूप नक्की करीने स्व तरफ झुकी गयो–त्यारे साची स्तुति थई.
पंचपरमेष्ठीनी परमार्थ उपासना आत्माना