Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : कारतक : २४९४
भगवान महावीरनो अहिंसा धर्म
(तेने बीजा कोई साथे सरखावशो नहीं)
बंधुओ, ‘अहिंसा’ बाबत एक महत्त्वनो खुलासो समजवो जरूरी छे: आजे घणा
माणसो (लेखको ने पत्रकारो पण) गांधीजीनी अहिंसानी वातोने भगवान महावीरनी अहिंसा
साथे सरखावे छे, ते सर्वथा अयोग्य छे. भगवान महावीरनी अहिंसा ते तो वीतरागी अहिंसा
हती, तेमां सर्वेजीवो प्रत्ये समभाव हतो. वांदरा अनाज खाई जाय तो तेने मारी
नांखवा, के अनाज न मळे माटे मांस–मांछला–ईंडा खावा, अने दुःखथी पीडाता कोई
जीवने झेरना ईन्जेकशनथी मारी नांखवो–एवुं प्रतिपादन ‘अहिंसा’ मां कदी संभवी शके नहीं,
ए बधा तो स्पष्टपणे तीव्रहिंसाना पापभावो ज छे. गांधीजी जेने अहिंसा कहेता तेनी मर्यादा
बहु तो राजकीय हेतु पूरती हती–राजकीय युद्ध न थाय एटली ज मर्यादा हती, वीरनी
वीतरागीअहिंसा तो कोई अनेरी छे.....जेमां पंचेन्द्रियवधनी तो वात ज क््यां, –पण एकेन्द्रियादि
जीवोनीये हिंसानो स्पष्ट निषेध ज छे.
सं. १९९प मां ज्यारे पू. गुरुदेव राजकोटमां बिराजता हता, ते वखते राजकोटना
सत्याग्रहप्रसंगे गांधीजी पण राजकोट आवेला ने शेठश्री नानालालभाई जसाणीना महेमान
बनेला, त्यारे गुरुदेवना प्रवचनमां एकवार गांधीजी आवेला, ते वखते गुरुदेवे महावीरनी
वीतरागीअहिंसानुं स्वरूप समजावतां कहेलुं के ‘आत्मानो स्वभाव राग
वगरनो छे, तेमां
जेटली रागनी उत्पत्ति थाय तेटली हिंसा छे, ने वीतरागभाव ते ज खरी अहिंसा छे..... ’ त्यारे
गांधीजी ते अहिंसाधर्मनुं स्वरूप समजी शक््या न हता, ने तेमणे कहेलुं के मारुं मगज हवे नवी
वातने ग्रहण करी शकतुं नथी.
आ प्रसंग एटला माटे रजु कर्यो छे के भगवान महावीरनी कहेली वीतरागी–अहिंसाने
सौ यथार्थ समजे, ने तेने बीजा कोई साथे सरखावीने तेमां विकृति न करे. जेओ (–जे
जैनपत्रकारो पण) महावीरनी अहिंसा साथे गांधीजी वगेरेनी अहिंसाने सरखावीने बंनेने
समकक्षमां मूके छे तेओ भगवान महावीरना वीतरागीअहिंसा मार्गने समज्या नथी.
अहिंसा मार्गना प्रणेता अरिहंतोनो जय हो
अहिंसा धर्मनो जय हो.