Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : कारतक : २४९४
तेना निषेकोनी रचनानो एवो एक प्रकार छे, तेने उदीरणामरण पण कहे छे. पण तेथी करीने
वर्तमान आयुष्यनी जेटली स्थिति हती ते घटी गई–एम नथी. तेमज ते जीवने ते मृत्युनो काळ
न हतो ने छतां मरण थई गयुं–एम ‘अकाळमरण’ नो अर्थ नथी. अकाळमरण पण आयुना
क्षयथी ज थाय छे.
प्रश्न:– जो शरीरथी धर्म न थतो होय तो देवो पण मनुष्यपर्यायनी ईच्छा केम करता हशे?
उत्तर:– धर्मात्मा देवो खरेखर मनुष्य देहनी ईच्छा नथी करता. पण मनुष्यअवतारमां
आत्मानी उग्र आराधना करीने, शुद्धोपयोगरूप मुनिदशानी ने केवळज्ञाननी भावना करे छे. देवो
पण मनुष्यदेहने वांछे छे. ’ एम क््यांक लख्युं होय तो तेनो भावार्थ एम समजवो के मनुष्य
थईने आत्मानी चारित्रदशाने आराधवानी भावना तेओ भावे छे.
प्रश्न:– दररोज सरेराश केटला जीवो मोक्षमां जाय?
उत्तर:– छ महिना ने आठ समये ६०८ जीवो मोक्षमां जवानो नियम छे; ते हिसाबे
मोक्षमां जनार जीवोनी सरेराश दररोज त्रण करतां थोडी वधु, त्रण दिवसे लगभग दश जेटली)
छे. महिने सरेराश एकसो एक जेटली थाय. जो के ए रीते दररोज अथवा महिने एटला जीवो
मोक्षमां जाय–एम नथी, पण एकंदर छ महिना ने आठ समयमां ६०८ जीवो मोक्ष जाय छे.
प्रश्न:– एक समयमां एक साथे वधुमां वधु केटला जीवो मोक्षमां जाय?
उत्तर:– १०८ (एकसो ने आठ)
प्रश्न:– कोई जीव मोक्ष न पामे–एवो समय वधुमां वधु केटलो होय?
उत्तर:– छ महिना.
* सोनगढमां रहेता अने भावनगरनी कोलेजमां अभ्यास करता एक उत्साही सभ्य
लखे छे के–आपणा माटे ए घणा हर्षनी वात छे के आपणुं धार्मिक मित्रमंडळ बे हजारनी संख्या
सुधी पहोंची रह्युं छे, अने हजी पण दिनेदिने तेनी संख्या वधती जाय छे. जिनवरना संतानोनुं
आ बाळ–मित्रमंडळ ए एक अजायबी जेवुं छे. गुरुदेवना प्रतापे एक वखत एवो हशे के ज्यारे
भारतनो एकेएक जैनबाळक आपणा आ मित्रमंडळनो सभ्य हशे. जो के आत्मधर्म द्वारा
आपणने दर महिने प्रेरणा मळती रहे छे, परंतु आपणी सभ्य संख्या जोतां आपणने पंदर
दिवसे के आठ दिवसे प्रेरणा मळे एवुं कोई साहित्य बहार पडे तो घणो लाभ थाय. ते माटे
आपणा संपादकश्रीने तेमज संस्थाने आपणी बधानी विनंती छे.