: कारतक : २४९४ आत्मधर्म : २५ :
(साथे गुरुमहिमा सूचक एक कोयडो मळेल छे, ते विशेष लांबो होवाथी लई शकायो नथी. बीजा
टूंका कोयडा मोकलो. तमारी भावना माटे आभार!)
प्रश्न:– एक ठेकाणे वांचेल के त्रण रत्नमांथी सम्यग्दर्शन चाल्युं जाय तो बाकी केटला रहे?
–तो शुं सम्यग्दर्शन थया पछी चाल्युं जाय खरुं? (R.P.Jain वींछीया)
उत्तर:– सम्यग्दर्शन पाम्या पछी पाछो चैतन्यने भूलीने कोई जीव मिथ्याद्रष्टि थई जाय
तो तेनुं सम्यग्दर्शन चाल्युं पण जाय. (पण ए नियम छे के ते जीव फरी पाछो अमुक काळे
सम्यग्दर्शन पामे ज, ने मोक्षमां जाय ज.)
प्रश्न:– सम्यग्दर्शन थया पछी पाप करे तो शुं थाय?
उत्तर:– सम्यग्दर्शन थया पछी एवा तीव्र पाप तो होय ज नहि के नरकादिनुं आयुष
बंधाय; अस्थिरता पूरता जे पाप–परिणाम होय ते घणा ज मंद होय छे, अने ते परिणाम तेना
सम्यक्त्वने बाधा पहोंचाडी शकता नथी. सम्यक्त्वना प्रतापे अनंतगुणमां जे शुद्धि थई छे ते तो
ते वखतेय वर्ती रही छे.
प्रश्न:– केटला भवे मारो मोक्ष? (Gunvant Jain खांभा)
वाह रे वाह! तमे खरा प्रश्नकार नीकळ्या भाई! व्यक्तिगत रीते तो तमारा प्रश्ननो उत्तर
हुं क््यांथी आपी शकुं? परंतु सैद्धान्तिक रीते उत्तर ए छे के आत्मानी खरी लगनीथी
सम्यग्दर्शनादिनो साचो प्रयत्न करीए तो घणा ज थोडा भवमां आपणो मोक्ष थाय.
आ प्रश्न उपरांत तमे नीचेनुं सुंदर लखाण लख्युं छे (शेमांकथी जोई जोईने) ते बदल
धन्यवाद!
“जेम डुंगर उपर वीजळी पडे अने तेना सेंकडो कटका थई जाय ते रेण दीधे संधाय नहि,
तेम एकवार पण जीव जो भेदविज्ञान प्रगट करे तो तेनी मुक्ति थाय ने तेने फरीथी अवतार रहे
नहीं; माटे ते भेदविज्ञान निरंतर भाववायोग्य छे. जेम तलवारने सज्ज करे तेम ज्ञानज्योति
सारी रीते सज्ज थई छे एटले के तैयार थई छे. एवी तैयार थई के केवळज्ञान लीधे छूटको.
केवळज्ञान लेवामां वच्चे बीजुं कांई आववानुं नथी. ज्ञानज्योति प्रगटी ते प्रगटी, हवे अखंड
धाराए केवळज्ञान सुधी पहोंची जवानी. धर्मात्मा हालतां–चालतां–खातां–पीतां आत्माने नथी
भूलता, कदाच देहनुं नाम भूलशे पण आत्माने नहि भूले.”
प्रः– ज्ञानीको पहचानने की क्या रीत? (M.K.Jain खैरागढ)
उ:– ज्ञान अने राग ए बंनेनी भिन्नता पोताना ख्यालमां आवे तो
ज्ञानपरिणतिवाळा ज्ञानीनी ओळखाण थई शके–के रागथी भिन्न आवी ज्ञानपरिणतिरूपे
ज्ञानीनो आत्मा परिणमी रह्यो छे. अने व्यक्तिगत रीते ‘आ जीव ज्ञानी छे’ एम तेमना
सत्संगपरिचयथी,