: २६ : आत्मधर्म : कारतक : २४९४
तेमनी आत्मप्रधान वाणीथी, तेमना चैतन्यउत्साहथी, तेमनी कोई विशिष्ट वीतरागी–
आत्मचेष्टाथी ओळखाय छे. ज्ञानीने ओळखवा माटे पण खास मुमुक्षुता होय छे. यथार्थ लक्षे
ज्ञानीने ओळखतां महान आत्मलाभ थाय छे.
प्रः– परवस्तुको अपना मानते हैं वह भूल हमारी किस उपायसे टले?
उ:– सत्समागम द्वारा चेतन अने जडना भिन्न लक्षणो जाणीने, वारंवार तेनो अभ्यास
करवाथी ज्यारे स्व–परनुं बराबर भेदज्ञान थाय छे त्यारे जीव पोताने शुद्धचेतनारूपे ज अनुभवे
छे, ने त्यारे परवस्तुने ते जरापण पोतानी मानतो नथी. –आ रीते भेदज्ञान वडे भूल टळे छे.
प्रश्न:– आठ काटखूणावाळी एक आकृति जेने जैनो मांगलिक माने छे, हीटलर पण जेने
पोतानुं चिह्न मानतो, जे चार गतिनो अभाव अने अरहंतदेवना चतुष्टयनी दर्शक छे; एना
मध्यबिंदुथी नीचे मुजब लीटीओ नीकळे छे:–
(१) ऊंचे जईने आडी थाय. (२) आडी थईने नीचे जाय.
(३) नीचे जईने पाछी जाय. (४) पाछी वळीने उपर जाय.
–ए आकृति कई? (K.M.Jain सोनगढ)
उत्तर:–
प्रश्न:– तमे मुनिओने मानो छो?
उत्तर:– जी हा; घणी ज भक्तिथी. पू. श्री कानजीस्वामी तो प्रवचनमां रोजेरोज
कुंदकुंदाचार्यदेव, अमृतचंद्रस्वामी, वीरसेनस्वामी, समन्तभद्रस्वामी वगेरे दिगंबर मुनिवरोने
अतिशय भक्तिपूर्वक याद करी करीने तेमनो महिमा ने वंदन करे छे; एवा संत मुनिराजना
दर्शननी रोज भावना भावे छे ने एवा कोई मुनिराज दर्शन आपे तो परम भक्तिथी एमना
चरण सेवीए–एम वारंवार कहे छे. भाग्ये ज कोई दिवस एवो जतो हशे के तेओए भक्तिपूर्वक
मुनिओने याद न कर्या होय! पण, अत्यारे एवा साचा मुनिराजना दर्शन ज अहीं दुर्लभ थई
गया छे, –त्यां शुं थाय! अरे, आठ वर्षना बाळक पण दिगंबर मुनि थईने आत्माना आनंदमां
झुलता होय–तेनो जे अपार महिमा गुरुदेव समजावे छे ते सांभळतां ते मुनिराज प्रत्ये भक्तिथी
मुमुक्षुना रोमरोम उल्लसी जाय छे.
प्रश्न:– शरीरने कष्ट आप्या वगर मोक्ष जवाय?
उत्तर:– आ प्रश्न जीव अने शरीरनी भिन्नताना भेदज्ञाननो अभाव सूचवे छे. भाई,
मोक्ष आपणे जवुं ने तेने माटे कष्ट शरीरने देवुं–ए क््यांनो न्याय? शरीर तो जड छे, एने कष्ट
शुं? ने सुख शुं? कंई शरीरने कष्ट देवाथी मोक्ष थवानुं भगवाने नथी कह्युं, भगवाने तो
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी आराधनाथी मोक्ष थवानुं कह्युं छे; ने ते आराधना तो बहु ज
आनंदकारी छे, तेमां कांई कष्ट नथी. एवी आराधना करनार जीवने शरीरनो मोह रहेतो नथी.