: कारतक : २४९४ आत्मधर्म : २७ :
* मु. श्री मगनलालभाई (ट्रस्टी) सुरेन्द्रनगरथी पोतानो प्रमोद व्यक्त करतां लखे छे–
“आत्मधर्म अंक २८६मां नव बहेनोए आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत लीधानुं जाण्युं. ते वांची खूब
आह्लाद थयो. पू. गुरुदेवश्रीना उपदेशनुं पान करीने अने बेनश्री–बहेनोनां सान्निध्यमां रहीने
जे बेनोए शील आदर्युं छे ते सौने मारा हृदयना अभिनंदन.”
विशेषमां तेओश्री लखे छे– “आत्मधर्म बधी रीते समृद्ध बन्युं छे. तमे तेमां तमारुं
जीवन अने कळा रेड्यां छे; तमारी श्रुतज्ञान–प्रत्येनी भक्तिने मारा अंतरना अभिनंदन.”
“आत्मधर्मनुं भेट पुस्तक ‘श्रावकधर्मप्रकाश’ वांच्युं. तेमां समयसार कलश २११ उपरनुं
पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन (स्वतंत्रतानी घोषणा) अवगाह्युं छे. पू. गुरुदेवश्रीए द्रव्यनी स्वतंत्रता
अने तेना गुणोनी स्वतंत्रताना अद्भुत न्यायो आप्या छे. आ कळिकाळमां आपणा सौनां
पुण्ययोगे आपणने आ महान विभूतिनो भेटो थयो छे. –जेटलो परमार्थ साधीए ते परम
शांतिनुं कारण छे.” (तेमना पत्रमांथी)
* N. २१प: ‘आसो वद चोथे’ तमे धर्मात्माओ प्रत्ये भक्तिपूर्वक सम्यक्त्वनी अने
धर्मात्माओ जेवा मंगल जीवननी उत्तम भावनाओ भावी तेमां अमारी अनुमोदना छे. खरुं ज
छे के प्रत्यक्षभूत धर्मात्माओनुं जीवन आपणने आत्मबोध आपी रह्युं छे. एमनुं दर्शन पण
आत्महितनी प्रेरणा आपनारुं छे.
* उत्तर प्रदेश–मुझफरनगरथी भाईश्री उग्रसेनजी जैन B.A.B.T. निवृत्त अध्यापक
भावभीनी लागणी व्यक्त करतां गुरुदेव उपर लखे छे के– “परम पूज्य गुरुदेवश्री, आपश्रीके
उपदेशने जो आध्यात्मिक क्रान्ति मेरेमें उत्पन्न की उसके लिये मैं आभार वास्तविक रीतिसे किस
प्रकार प्रगट करुं?
अभागा मैं ऐसा हूं कि आज तक भी सोनगढमें उस अमृतवर्षाका पान करने को न आ
सका! केवल आत्मधर्म से ही–उसके जन्म दिवससे, तथा सोनगढके समस्त ग्रंथोके अवलोकनसे
लाभ लिया. सन १९प७ में तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर व देहलीमें, तथा दो वर्ष पश्चात्
श्रवणबेलगोल तथा मैसूरमें आपश्रीकी अमृतवाणीकी प्राप्ति मुझे हुई.
प्राप्त करानेमें रामबाणके समान है. पं. बंसीधरजी ईन्दौरवालोंके शब्दोंके अनुसार आप ज्ञानके
समुद्र हैं. आपने व्यवहारविमूढ जगतकी पराश्रयकी श्रद्धा छुडाकर अविचलद्रष्टि रखनेका मार्ग
उसके लिये सुगम तथा सुबोध कर दिया.”