Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९४ आत्मधर्म : ३१ :
(२प) कोई पण जीवने अविनाशीदेहनी प्राप्ति थई एम दीठुं नथी, जाण्युं नथी, तथा
संभवतुं नथी; अने मृत्युनुं आववुं अवश्य छे; एवो प्रत्यक्ष निःसंशय अनुभव छे; तेम छतां
पण आ जीव ते वात फरीफरी भूली जाय छे, ए मोटुं आश्चर्य छे. (प६८)
(२६) अचिंत्य जेनुं माहात्म्य छे एवुं सत्संगरूपी कल्पवृक्ष प्राप्त थये जीव दरिद्र रहे एम
बने तो आ जगतने विषे ते अगियारमुं आश्चर्य छे. (९३६)
(२७) जेटली आकुळता छे तेटलो मार्गनो विरोध छे, एम ज्ञानीपुरुषो कही गया छे, –जे
वात जरूर आपणे विचारवा योग्य छे. (३७४)
(२८) व्यावहारिक चिंतानुं वेदन अंतरथी ओछुं करवुं, ए एक मार्ग पामवानुं साधन
छे. (१९२)
(२९) बननार छे ते फरनार नथी अने फरनार छे ते बननार नथी;– तो पछी धर्म–
प्रयत्नमां, आत्मिकहितमां अन्य उपाधिने आधीन थई प्रमाद शुं धारण करवो? (४७)
(३०) अत्यंत दुषमकाळ छे तेने लीधे, अने हतपुण्यलोकोए भरतक्षेत्रे घेर्युं छे तेने लीधे,
परमसत्संग सत्संग के सरळपरिणामी जीवोनो समागम पण दुर्लभ छे, –एम जाणी
अल्पकाळमां सावधान थवाय तेम करवुं घटे छे. (अभ्यंतर परिणाम–अवलोकन)
(३१) ज्ञानीपुरुषनां वचननो द्रढ आश्रय जेने थाय तेने सर्व साधन सुलभ थाय.
(प६०)
(३२) ज्ञानीपुरुषना द्रढ आश्रयथी सर्वोत्कृष्ट एवुं मोक्षपद सुलभ छे. (प६०)
(३३) संसार प्रत्ये बहु उदासीनता, देहनी मूर्छानुं अल्पत्व, भोगमां अनासक्ति तथा
मानादिनुं पाताळापणुं, ए आदि गुणो विना तो आत्मज्ञान परिणाम पामतुं नथी. (प२७)
(३४) असार अने कलेशरूप आरंभपरिग्रहना कार्यमां वसतां जो आ जीव कंई पण
निर्भय के अजागृत रहे तो घणां वर्षनो उपासेलो वैराग्य पण निष्फळ जाय एवी दशा थई आवे
छे, एवो नित्य प्रत्ये निश्चय संभारीने, निरूपाय प्रसंगमां, कंपता चित्ते, न ज छूटके, प्रवर्ततुं घटे
छे, –ए वातनो मुमुक्षु जीवे कार्य कार्य क्षणेक्षणे अने प्रसंगेप्रसंगे लक्ष राख्या विना मुमुक्षुता
रहेवी दुर्लभ छे. अने एवी दशा वेद्या विना मुमुक्षुपणुं पण संभवे नहीं. (प६१)
(३प) जो कंई पण आ संसारना पदार्थोनो विचार करवामां आवे तो ते प्रत्ये वैराग्य
आव्या विना रहे नहीं; केमके मात्र अविचारे करीने तेमां मोहबुद्धि रहे छे. (प७०)
(३६) मने एम लागे छे के जीवने मूळपणे जोतां, जो मुमुक्षुता आवी होय तो नित्य
प्रत्ये तेनुं संसारबळ घट्या करे.