: ३२ : आत्मधर्म : कारतक : २४९४
संसारमां धनादि संपति घटे के नहीं ते अनियत छे, पण संसारप्रत्ये जे जीवनी भावना ते मोळी
पड्या करे, अनुक्रमे नाश पामवा योग्य थाय.
(३७) जेटलो वखत आयुष्यनो तेटलो ज वखत जीव उपाधिनो राखे तो मनुष्यत्वनुं
सफळ थवुं कयारे संभवे? मनुष्यत्वना सफळपणा माटे जीववुं ए ज कल्याणक छे. (१९९)
(३८) जगतमां रूडुं देखाडवा माटे मुमुक्षु कांई आचरे नहीं, पण रूडुं होय ते ज आचरे.
(२७४)
(३९) असत्संग अने असत्प्रसंगथी जीवनुं विचारबळ प्रवर्ततुं नथी.
(४०) आत्माने वारंवार संसारनुं स्वरूप कारागृह जेवुं क्षणेक्षणे भास्या करे, ए
मुमुक्षुतानुं मुख्य लक्षण छे. (४९८)
(४१) एवो एक ज पदार्थ परिचय करवा योग्य छे के जेथी अनंत प्रकारनो परिचय
निवृत्त थाय छे;– ते कयो? अने केवा प्रकारे? तेनो विचार मुमुक्षुओ करे छे. (४७१)
(४२) सत् ए कांई दूर नथी, पण दूर लागे छे, अने ए ज जीवनो मोह छे. (२११)
(४३) जेने (सत्) प्राप्त करवानी द्रढ मति थई छे, तेणे पोते कांई ज जाणतो नथी–
एवो द्रढ निश्चयवाळो प्रथम विचार करवो, अने पछी ‘सत्’ नी प्राप्ति माटे ज्ञानीने शरणे जवुं.
तो जरूर मार्गनी प्राप्ति थाय. (२११)
(४४) आ जे वचनो लख्यां छे ते सर्वे मुमुक्षुने परम बांधवरूप छे; ए तमने अने कोई
पण मुमुक्षुने गुप्त रीते कहेवानो अमारो मंत्र छे. (२११)
(४प) मात्र ज्ञानीने ईच्छे छे ओळखे छे अने भजे छे, ते ज तेवो थाय छे, अने ते
उत्तम मुमुक्षु जाणवा योग्य छे. (३पप)
(४६) आत्महेतुभूत एवा संग विना सर्व संग मुमुक्षुजीवे संक्षेप करवो घटे छे, केमके ते
विना परमार्थ अविर्भाव थवो कठण छे. (६प३)
(४७) आरंभ–परिग्रह पर विशेष वृत्ति वर्तती होय ते जीवमां सत्पुरुषना वचननुं
अथवा सत्शास्त्रनुं परिणमन थवुं कठण छे. (७८३)
(४८) जे कांई प्रिय करवा जेवुं छे ते जीवे जाण्युं नथी, अने बाकीनुं कांई प्रिय करवा
जेवुं नथी, आ अमारो निश्चय छे. (१९८)
(४९) विशाळबुद्धि मध्यस्थता सरळता अने जितेन्द्रियपणुं–आटला गुणो जे आत्मामां
होय ते तत्त्व पामवानुं उत्तम पात्र छे (४०)
(प०) प्रथम मनुष्यने यथायोग्य जिज्ञासुपणुं आववुं जोईए छे; पूर्वना आग्रहो अने
असत्संग टळवा जोईए छे. ए माटे प्रयत्न करशो. (१७८) (अनुसंधान पृष्ठ ३७)