Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९४ आत्मधर्म : ३३ :
वीरतणां सन्तान
(१) निज स्वरूपने जाणजो करजो आतमज्ञान,
चेतीने चालो तमे छो वीरतणां सन्तान.
(२) जिनवर दर्शन नित करी, करजो आतमज्ञान,
जिन–मारगमां चालजो..ओ..वीरतणां सन्तान.
(३) वीतरागवाणी सूणी करजो आतमज्ञान,
सत्य पुरुषारथ करो ओ...वीरतणां सन्तान.
(४) गुरुचरण सेवा करो ज्ञानीनुं बहुमान,
भवनो छेडो पामवा ओ...वीरतणां सन्तान.
(प) रत्नत्रयने पामजो लेजो केवळज्ञान,
सिद्धपद साधक तमे छो वीरतणां सन्तान.
(६) साधर्मीनी प्रीतडी, स्वाध्याय ने वळी दान,
भावो ऊंची भावना......छो वीरतणां सन्तान.
(७) बहिरभाव स्पर्शे नहि, जुदे जुदुं ज्ञान,
भेदज्ञान जागृत करो हो वीरतणां सन्तान.
(८) अनंतशक्ति आत्मनी करजो एनुं भान,
भवभ्रमणथी छूटवा, छो वीरतणां सन्तान.
(९) अभेदमां भेद न करो, अनुभूति एकतान,
उपयोग अंतर्मुख करो ओ....वीरतणां सन्तान.
(१०) सभ्यो बालविभागना गावो गुरुनां गान,
समकित पामीने थजो सौ जिनवरनां सन्तान.
(चंद्राबेन जैन स. नं. २ राजकोटना काव्य उपरथी)