Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : कारतक : २४९४
जीवनी नित्यता
राजस्थानमां आठ वर्षनी ‘सोना’ ने पूर्वजन्मनुं ज्ञान
पूर्वभवमां जुनागढनी गीता ने वर्तमानमां वांकानेरनी राजुल, जे हमणां सात वर्षनी
छे, तेने अढी वर्षनी वये पूर्वजन्मनी स्मृति आववानो किस्सो आपणे जाणीए छीए, ने घणाए
ते राजुलबेनने नजरे पण जोई छे; हमणां ‘मुंबई समाचार’ मां पण आ प्रकारना एक
किस्सानो उल्लेख आव्यो छे. तेमां लखेल छे के–सोना नामनी आठ वर्षनी एक बाळाए पोताना
गतजन्मनी साचेसाची विगतो आपीने सौ कोईने आश्चर्यमां गरकाव करी दीधा छे. बाळाए
पोताना पूर्वजन्म संबंधे जे कांई कह्युं हतुं तेनी सत्तावार तपास करतां ते साचेसाचुं पूरवार थयुं
छे. पूरेपूरी तपास बाद कोटाना कलेकटर श्री बी. पी. शुदेए जणाव्युं हतुं के सोनाए जे कांई कह्युं
छे ते पूरेपूरुं सत्य ज छे तेनी मने खातरी थई छे. पुनर्जन्मनो आ एक खरो किस्सो छे. बेन
सोनाए पोताना गतजन्मना मकानने तेमज संबंधीओने नाम सहित ओळखी बताव्या हता.
(सोना ते राजस्थानमां कोटा जिल्लाना खजुराणा गामनी छे.)
जो के सोनगढने माटे आ कोई आश्चर्यनी वात नथी, केमके आराधकभाव सहितना
अत्यंत स्पष्ट धार्मिक जातिस्मरणवाळा जीवो ज्यां नजरे देखाता होय त्यां तेमना लोकोत्तर
पवित्रज्ञान पासे बीजुं ज्ञान आश्चर्य उपजावतुं नथी, पण जीवोने आवा उदाहरणथी आत्मानी
नित्यता अने पुनर्जन्मनी प्रतीति पुष्ट थाय ते कारणे आवा बनावोनो उल्लेख करीए छीए.
बाकी तो ‘आत्मसिद्धि’ मां आत्मानी नित्यता सरस रीते युक्तिपूर्वक सिद्ध करतां श्रीमद्
राजचंद्रजीए कह्युं छे के–
देह मात्र संयोग छे, वळि जड, रूपी द्रश्य, चेतननां उत्पत्ति लय, कोना अनुभव वस्य?
जेना अनुभववश्य ए, उत्पन्न लयनुं ज्ञान, ते तेथी जुदा विना, थाय न केमें भान.
जे संयोगो देखीये, ते ते अनुभव द्रश्य, उपजे नहि संयोगथी, आत्मा नित्य प्रत्यक्ष.
जडथी चेतन उपजे, चेतनथी जड थाय, एवो अनुभव कोईने, क््यारे कदी न थाय.
कोई संयोगोथी नहीं जेनी उत्पत्ति थाय, नाश न तेनो कोईमां, तेथी नित्य सदाय.
क्रोधादी तरतम्यता, सर्पादिकनी मांय, पूर्वजन्म संसार ते, जीव नित्यता त्यांय
आत्मा द्रव्ये नित्य छे, पर्याय पलटाय, बाळादी वय त्रण्यनुं, ज्ञान एकने थाय.
अथवा ज्ञान क्षणिकनुं, जे जाणी वेदनार, वदनोे ते क्षणिक नहि, कर अनुभव निर्धार.
क््यारे कोई वस्तुनो, केवळहोय न नाश, चेतन पासे नाश तो, केमां भळे तपास
आ रीते आत्मा नित्य छे; अने क्षणिकसंयोगी एवा आ शरीरथी ते जुदो छे एम
समजीने तेने ओळखवानो प्रयत्न करवो.