Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : कारतक : २४९४
सुखना पंथे चडेला धर्मात्मा
(आसो वद चोथना प्रवचनमांथी)
सुखना पंथे चडेला धर्मात्मा केवा होय? ते बतावे छे. चैतन्यनी अनूभुतिवडे सुखनो
स्वाद जेणे चाख्यो, चैतन्यरसना जे रसिया थया, एवा शांत–धर्मात्मा पोताना ज्ञानभावमां
उल्लसे छे, पोताना अंतरमां आनंदना दरिया उल्लसता अनुभवे छे.
आत्मा आत्माना भावमां उल्लसे छे, –परिणमे छे, ने पुद्गल पुद्गलना भावमां
उल्लसे छे. बंने तद्न जुदां छे. अशुद्ध परिणाममां पण धर्मीनो उल्लास नथी. ते अशुद्धभाव
पोताना स्वभावपणे ज्ञानीने अनुभवाता नथी.
जे अशुद्धभावने ज वेदे छे, तेने ज पोतानुं कार्य माने छे, ते तो दुःखना डुंगरे
अनुभूतिथी पोताना आनंदना डुंगरे चडया छे, सुखनी गूफामां बेठा छे. अहो! धर्मात्मा
सुखना पंथे चडया...सिद्धपदना साधक थया.
चैतन्यलक्षण आत्मामां छे; पुण्य–पाप मां चैतन्यलक्षण नथी. चैतन्यलक्षण द्वारा आत्माने
पकडीने अनुभव्यो त्यां परभावोथी भिन्नता थई, सम्यग्दर्शन थयुं, मोक्षमार्गना द्वार खुल्या.
ज्ञानना उल्लासथी सम्यग्द्रष्टिए आत्माने अनुभव्यो छे. ज्ञानलक्षणना पंथे
दोरायेला ते धर्मात्मा परभावोथी जुदा पडीने, ऊंडा सुखना पाटे चडया, तेनी रेल
(परिणतिनो प्रवाह) सुखना दरिया तरफ चाले छे.
धर्मी जाणे छे के हुं ‘स्वयं’ एटले, के परनी अपेक्षा विना रागनी अपेक्षा विना,
मारा आत्माने स्वानुभव–प्रत्यक्ष करु छुं. स्वानुभव प्रत्यक्ष थतां अंदर भान थयुं के
अहो, मारा आत्मानो उल्लास रागथी जुदो छे. सीताजी वगेरे धर्मात्माओए पोताना
आत्माने आवो अनुभव्यो छे. धर्मना दोर अलौकिक छे.
मारुं सुख मारा अस्तित्वमां छे. जेमां मारुं अस्तित्व नथी तेमां मारुं सुख केम
होय? धर्मीए पोताना अस्तित्वमां पोतानुं सुख जोयुं छे. ज्ञान थतां अनादिनो विभाव
मटी गयो ने अपूर्व स्वभाव प्रकाशमान थयो. अने भान थयुं के मारा होवापणामां तो
आनंद ने ज्ञान ज छे, अनंतज्ञानथी ने आनंदथी ज हुं भरेलो छुं. आवा स्वमां उल्लसित
परिणामे परिणमेला धर्मात्मा सुखना पंथे चडया छे...हवे तेमने सुख ज आवशे.
शुद्ध चिदानंद स्वरूपना अनुभवद्वारा चोथा गुणस्थानथी ज आत्मामां राग
वगरनुं ज्ञान अनुभवाय छे. ज्ञान अने राग वच्चे एकता नथी पण भिन्नता छे, तेथी
भेदज्ञानवडे तेमने भिन्नपणे अनुभववा ते सुगम छे, अत्यारे थई शके छे. ने एवो
अनुभव करतां ज आत्मा परमसुखना पंथे प्रयाण करे छे.
सुखना पंथे चडेला धर्मात्माने नमस्कार हो