मागशर २४९४ : आत्मधर्म : ७
परम शांतिदातारी अध्यात्मभावना
(लेखांक–प७) (अंक २८९ थी चालु)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामीरचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
[वीर सं. २४८२ श्रावण सुद ११]
हवे अभिन्न उपासनानुं दृष्टांत तथा फळ कहे छे–
उपास्यात्मानमेवात्मा जायते परमोऽथवा
मथित्वात्मानमात्मैव जायतेऽग्नि यथातरुः।। ९८।।
आत्मानी उपासनामां, भिन्न उपासना अने अभिन्न उपासना एम बे प्रकार छे;
अर्हंत–सिद्धना स्वरूपने जाणीने तेवा पोताना स्वरूपने ध्याववुं ते उपासना छे; तेमां
अरिहंतनी उपासना कहेवी ते भिन्न उपासना छे, ने पोताना स्वरूपनी उपासना कहेवी ते
अभिन्न उपासना छे. भिन्न उपासनानी वात ९७मी गाथामां करी; अने वांसमांथी स्वंय
अग्नि थाय छे ते दृष्टांते अभिन्न उपासनानुं स्वरूप आ गाथामां समजावे छे.
जेम वांसनुं झाड बहारना बीजा कोई साधन वगर पोते पोतानी साथे ज घसारा
वडे अग्निरूप थई जाय छे; तेम आत्मा बीजा कोईना अवलंबन वगर, पोते पोतामां ज
एकाग्रताना मथन वडे परमात्मा थई जाय छे. जेम वांसमां शक्तिरूपे अग्नि भरेलो छे, ते
वांस घसारा वडे पोते व्यक्त अग्निरूप परिणमी जाय छे; तेम आत्मामां परमात्मदशा
शक्तिरूपे पडी छे, ते पर्यायने अंतरमां एकाग्र करीने स्वभावनुं मथन करतां करतां आत्मा
पोते परमात्मदशारूप परिणमी जाय छे. आमां जे त्रिकाळ शक्ति छे ते शुद्धउपादान छे, ने
पूर्वनी मोक्षमार्गरूप पर्याय ते व्यवहारकारण छे तेथी तेने निमित्त पण कहेवाय, त्रिकाळरूप
जे शुद्ध स्वभाव छे ते ज मोक्षनुं परमार्थ कारण छे. ते कारणस्वरूपमां एकाग्र थतां मोक्ष थाय
छे. अहीं तो अभिन्न उपासना बताववी छे, एटले आत्मा पोते पोतामां एकाग्रता वडे
पोतानी उपासना करीने परमात्मा थई जाय छे. जुओ, आ सीधो सट मोक्षनो मार्ग!
आत्मानी उपासना ते ज मोक्षनो सीधो अने अफर मार्ग छे.
जुओ, आमां निश्चय–व्यवहार कई रीते आव्या? त्रिकाळ कारणपरमात्मा भूतार्थ–