६ : आत्मधर्म : मागशर २४९४
शुभ के अशुभ परिणाम तथा ते संबंधी बाह्य क्रिया, तो अज्ञानीने होय,
ज्ञानीने पण होय, बंनेने एक सरखा जेवुं देखाय, पण ते ज वखते अंतरनी
परिणामधारामां बंने वच्चे मोटो फेर छे. ज्ञानीनुं ज्ञान तो ते ज वखते रागादिथी वेगळुं
रहीने परिणमे छे, ने अज्ञानी रागादिमां तन्मयबुद्धिथी वर्ते छे; एटले ज्ञानी ज्ञानमय
परिणाममां अबंधपणे वर्ती रह्या छे, ने अज्ञानी रागादि बंधभावोमां वर्ती रह्यो छे,
ज्ञान ने रागनी भिन्नता लक्षमां आव्या वगर ज्ञानी अने अज्ञानीनो आ फेर समजाय
नहि. ज्ञानीने जे भेदज्ञान थयुं छे ते ज्ञान शुभाशुभ वखतेय खसतुं नथी, शुभाशुभमां
तेनुं ज्ञान भळी जतुं नथी पण भिन्न ज रहे छे. आवी भिन्नतानुं भान ते ज्ञानचेतना
छे; ने आवी ज्ञानचेतना बंधनुं कारण थती नथी. ज्ञानीने ज आवी ज्ञानचेतना होय
छे.
निर्विकल्पता वखते ज धर्मीने ज्ञानचेतना होय ने अशुभ के शुभराग वखते ते
ज्ञानचेतना चाली जाय–एम नथी. चैतन्यस्वभावने अवलंबनारी ज्ञानचेतना तेने
सदाय वर्ते छे. राग वखते तेनी चेतना रागमय थई जती नथी, पण रागथी भिन्न
शुद्धात्माने चेतती थकी ते चेतना तो चेतनामय ज रहे छे. माटे ज्ञानीने सदाय
चेतनभावरूप परिणाम वर्ते छे. ते भाव बंधनुं कारण नथी, ते अबंधभाव छे, ने ते
मोक्षनुं कारण छे.
अहो, चैतन्यस्वभावनो जेने प्रेम जाम्यो छे तेनां परिणाम तेवी जातनां ज होय
छे. द्रव्यनो एवो ज शुद्धस्वभाव छे के तेना आश्रये शुद्धता ज परिणमे छे, अने
रागादिमां तन्मयबुद्धिथी अज्ञानीने बधा अशुद्धपरिणाम ज थाय छे, ते अज्ञानमय ज
छे. ज्ञानी अने अज्ञानीना परिणमनमां आ मोटो फेर छे. अज्ञानी भिन्नज्ञानने भूलीने
रागादि बंधभावना अनुभवमां ज अटकी जाय छे एटले तेने बंधन ज थाय छे, शुद्धता
जराय थती नथी. अने ज्ञानी तो रागथी भिन्न ज्ञानमयभावमां परिणमतो थको
मोक्षने साधे छे, तेने बंधन थतुं नथी, तेने शुद्धता थती जाय छे. आ रीते ज्ञानीना बधा
भावो ज्ञानमय छे; एवी ज्ञानचेतनानो कोई अपार महिमा छे के जे मोक्षने साधे छे.
(जय जिनेन्द्र)