Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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मागशर २४९४ : आत्मधर्म : ५
अज्ञानीने रागादि साथे एकतारूप जे अशुद्धचेतना छे ते बंधनुं कारण छे.
ज्ञानीने रागथी भिन्न पोताना आनंदस्वभावने चेतनारी जे ज्ञानचेतना छे ते
मोक्षनुं कारण छे.
आ ‘ज्ञानचेतना’ ज ज्ञानीनुं लक्षण छे. ज्ञानचेतना छे ते शुद्धआत्माना
अनुभवरूप छे. शास्त्रोना जाणपणा उपरथी ज्ञानचेतनानुं माप नथी, ज्ञानचेतना तो
अंतरमां आत्माना आनंदने चेतनारी छे. अज्ञानीने शास्त्रोनुं जाणपणुं होय तोपण
तेने शुद्धात्माना वेदनरूप ज्ञानचेतना नथी, तेना बधा परिणाम (शास्त्रनुं जाणपणुं
पण) अज्ञानचेतनारूप छे. ने ज्ञानीने शास्त्रोनुं जाणपणुं वधतुं–ओछुं हो पण अंदर
शुद्धआत्माने द्रष्टिमां लईने तेनो आत्मा शुद्ध ज्ञानचेतनारूपे परिणमी रह्यो छे; ते
ज्ञानचेतनामां अज्ञाननो अंश पण नथी. आवी ज्ञानचेतनामय ज्ञानीना परिणाम
होवाथी तेना बधा परिणाम ज्ञानमय छे. राग ते खरेखर ज्ञानचेतनाना परिणाम
नथी, ते तो ज्ञानचेतनाथी बहार ज छे.
अरे, आवी ज्ञानचेतनाने ओळखे तो तेना अपार महिमानी खबर पडे.
सम्यग्द्रष्टिना बधा परिणाम ज्ञानमय थाय छे. ज्ञानीनुं ज्ञान क््यारेय रागमय थतुं
नथी; एटले तेना ज्ञानपरिणाम कदी बंधनुं कारण थता नथी. अबंधस्वरूप
आत्मस्वभावमां एकपणे परिणमतुं ज्ञान बंधनुं कारण केम होय? –न ज होय. अने जे
अल्प रागादि छे तेमां तो ज्ञाननी तन्मयता नथी; तो जेनी साथे तेने तन्मयता नथी ते
बंधभावोने ज्ञानीनां परिणाम केम कहेवाय? ते बंधपरिणामने धर्मीनी द्रष्टि पोतामां
स्वीकारती नथी, तेना ज्ञानपरिणाम रागथी जुदा ने जुदा ज रहे छे. ज्ञान अने रागना
स्वरूपनी आवी भिन्नतानो निर्णय करतां जरूर भेदज्ञान थाय छे.
अज्ञानीने पर्याये पर्याये रागादि बंधभावो साथे एकत्वबुद्धि छे, एटले तेना
बधा भावो अज्ञानमय छे. भिन्न ज्ञाननी तो तेने खबर नथी. अशुभ के शुभ बंने
भाव वखते अज्ञानी पोताने रागमय अशुद्ध ज देखे छे, एनाथी जुदुं स्वरूप एने
भासतुं नथी. पापना अशुभ के पुण्यना शुभ ते बधा परिणामो ज्ञानमांथी उपजेला
नथी पण अशुद्धजातिमांथी ज उपज्या छे, एटले ते भावो ज्ञानमय नथी पण
अज्ञानमय छे, अशुद्ध छे. ज्ञानीने, शुभ–अशुभ वखतेय तेनाथी जुदी निर्मळ ज्ञानधारा
चाली रही छे.