Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आत्मधर्म : मागशर २४९४
ज्ञानीना बधा भावो ज्ञानमय ज छे
(ज्ञानीनी ‘ज्ञानचेतना’ नो महिमा)
समयसारकळश ६६–६७ उपरना प्रवचनमांथी.
ज्ञानी–सम्यग्द्रष्टिने ज्यां भेदज्ञान थयुं, चैतन्यभावने अने रागभावने
स्वादभेद जाणीने भिन्न जाण्या, त्यां ते सम्यग्द्रष्टिना परिणाम ज्ञानमय ज होय छे,
रागमय परिणाम तेने होतां नथी.
प्रश्न:– ज्ञानीनेय चारित्रमोह वगेरेना उदयथी रागादि विचित्र परिणामो तो वर्ते
छे, छतां तेना परिणाम ज्ञानमय ज केम कह्या?
उत्तर:– भाई, ते रागना काळेय ज्ञानीनुं ज्ञान कांई रागमय थई गयुं नथी, ते
तो रागथी जुदुं ज ज्ञानस्वभावमां तन्मय वर्ते छे. माटे रागादि छे ते ज्ञानीनां परिणाम
खरेखर नथी, ज्ञानमय भाव ते ज ज्ञानीनां परिणाम छे. रागना काळे पण ज्ञानी तेने
पोताथी भिन्नपणे जाणे छे, ने ते वखतना ज्ञानने पोताथी अभिन्न जाणे छे. माटे
ज्ञानमयपरिणाम ज ज्ञानीने छे. सम्यक्त्व–ज्ञान–आनंद ए बधा शुद्धपरिणामो ज्ञानमां
समाय छे, पण रागादि अशुद्ध परिणामो ज्ञानमां समाता नथी.
अज्ञानीने राग वखते रागथी जुदुं ज्ञान भासतुं नथी, एटले ते तो पोताने
रागमय ज अनुभवे छे, एटले तेनो बधो अनुभव अज्ञानमय छे. आनंदस्वरूप
आत्मानुं भान नथी, वेदन नथी, एटले अज्ञानमय भावने ज ते वेदे छे. आ रीते
अज्ञानीना बधा भावो अज्ञानमय छे, ने ज्ञानीना बधा भावो ज्ञानमय छे.
रागादिथी भिन्न परिणमतो ज्ञानी ते रागादिनो कर्ता केम होय? ज्ञानमां
तन्मय परिणमतो ज्ञानी ज्ञाननो ज कर्ता छे. रागमां तन्मय परिणमतो अज्ञानी ज ते
रागादिनो कर्ता छे. राग साथे एकत्वबुद्धि होवाने लीधे तेना बधा परिणाम रागमय छे
एटले अज्ञानमय छे, रागथी भिन्न ज्ञानमय परिणाम अज्ञानीने होता नथी. आ रीते
ज्ञानी अने अज्ञानीना परिणमनमां मोटो तफावत छे. आ भेदने जे ओळखे तेने ज्ञान
अने रागनुं भेदज्ञान थईने ज्ञानमय परिणमन थया वगर रहे नहीं.