Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 45

background image
मागशर २४९४ : आत्मधर्म : ३
–अने ज्ञानीना ज्ञान ने राग साथेय कर्ताकर्मपणानो संबंध नथी. आवुं भेदज्ञान
थतां आत्मामां ज्ञाननो प्रकाश प्रगट्यो; अने ज्ञानमयभावपणे परिणमता
आत्मामां अनंत पांखडीवाळा ज्ञान–आनंदनां कमळ खील्यां, ते हवे कदी बीडाशे
नहीं. –भगवान पोताना स्वधाममां–सुखधाममां आवीने वस्या.–
सादि अनंत अनंत समाधि सुखमां
अनंत दर्शन ज्ञान अनंत सहित जो.
आवा सिद्धपदरूप स्वघरमां आत्मा सदाकाळ बिराजमान रहेशे.
नमो सिद्धाणं
सुखी थवुं होय तेने माटे आ एक ज रस्तो
छे, बाकी तो बधा दुःखी थवाना रस्ता छे. भगवान
जे रस्ते मोक्ष पाम्या ते आ रस्तो छे. सन्तोए
पोताना अंतरमां जोयेलो आ मार्ग जगतने
उपदेश्यो छे के हे जीवो! निःशंकपणे आ मार्गे चाल्या
आवो. –आत्माने भगवान बनाववानी आ रीत
छे. वाह रे वाह! वीतरागी सन्तोए अंदरमां
पोतानां काम तो कर्या ने जगतने पण ते मार्ग
बतावीने अलौकिक उपकार कर्यो छे. जगतना
एटला महा भाग्य छे.