Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आत्मधर्म : मागशर २४९४
(भाईश्री त्रिभुवनदासभाईना मकानना वास्तु प्रसंगे)
आत्मामां भेदज्ञानरूपी अनुभवनो प्रकाश केम थाय? तेनी आ वात छे.
सुखधाम आत्मा छे; तेना आनंदनो अनुभव भेदज्ञान वडे थाय छे, ते भेदज्ञान–
प्रकाश मंगळ छे. सुखधाम एवा आत्मामां वास करवो तेनुं नाम मोक्ष.
ज्ञान ते ‘भगवान’ छे, ने रागभाव ते ज्ञानथी भिन्न होवाथी ‘अज्ञान’
छे. आवा भेदज्ञाननो वारंवार तीव्र अभ्यास करतां स्वसन्मुख प्रगट अनुभव
थाय छे.
सर्वज्ञ भगवंतोए आ प्रमाणे आत्मअनुभव कर्यो, ने आवो अनुभव
करवानुं जगतने कह्युं. आवो अनुभव कर्यो तेना आत्मामां आनंदनुं वर्ष बेठुं;
चैतन्यनुं साचुं धन तेणे प्राप्त कर्युं.
प्रभो! तारा आत्मामांथी अज्ञान–अंधकार दूर थाय ने ज्ञानना दीवडा प्रगटे–
तेनी रीत संतोए बतावी छे. राग अने ज्ञाननी एकता न होवा छतां अज्ञानथी ज
एकता भासे छे. तेमने भिन्न अनुभववानी तारी ताकात छे, केमके तेओ भिन्न छे,
भिन्न छे तेने भिन्न जाणीने अनुभव करवो ते सुगम छे, थई शके छे.
तीर्थंकरदेवे ईन्द्रोनी सभा वच्चे आत्मानुं जे स्वरूप उपदेश्युं ते स्वरूप अहीं
आचार्यदेवे भरतक्षेत्रना जीवोने समजाव्युं छे. जेम भरत चक्रवर्ती गूफामां जवा
माटे रत्ननो प्रकाश करे छे, तेम आ चैतन्यगूफामां जवा माटे भेदज्ञानरूपी रत्ननो
प्रकाश कर.....तो तने अंदरनी चैतन्यगूफामां मोक्षनो मार्ग स्पष्ट देखाशे.
मोक्षमार्गमां जतां आत्मानो साथीदार कोण? आत्मानो साथीदार राग
नथी, आत्माना साथीदार तो ज्ञान ने आनंद छे; भगवान ज्ञान अने आनंदने साथे
लईने मोक्षमां गया, रागने तो अत्यंतपणे छोडयो. माटे एवुं भेदज्ञान करवुं जोईए.
ज्ञानी अने ज्ञानावरण ए बंने अत्यंत जुदा छे, तेने कर्ताकर्मपणुं नथी; ज्ञानी
तो चैतन्यमय जीव, अने ज्ञानावरण तो अजीव, तेमने कर्ता–कर्मपणुं केम होय?