Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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मागशर २४९४ : आत्मधर्म : ९
उपासना छे. आवी उपासना विना मुक्ति नथी. जेम वांसना वृक्षने अग्निरूप थवामां
पोताथी भिन्न बीजाुं साधन–निमित्त नथी, पोते पोतामां ज घर्षणवडे अग्निरूप थाय छे;
तेम आत्माने परमात्मा थवामां पोताथी भिन्न बीजुं साधन नथी, पोते पोतामां ज
घर्षणवडे (–निर्विकल्प लीनता वडे) पोताना ध्यानथी ज परमात्मा थई जाय छे.
निजस्वरूपने ध्यावी ध्यावीने ज अनंता जीवो सिद्धपदने पाम्या छे. अनंता जीवो आत्माने
ध्यावीने परमात्मा थया छे, पण परने ध्यावीने परमात्मा नथी थया.
आत्मानो द्रव्यस्वभाव त्रिकाळ मोक्षस्वरूप छे, ने पर्यायमां मोक्ष नवो प्रगटे छे;
एटले “द्रव्यमोक्ष” त्रिकाळ छे, ने तेना आश्रये “भाव–मोक्ष” (मुक्तदशा) प्रगटी जाय छे.
शक्तिना ध्यानवडे मुक्ति थाय छे. ध्याता, ध्यान अने ध्येय ए कांई जुदाजुदा नथी, आत्मा
पोते ध्याता, पोते ज ध्येय अने पोतामां ज एकाग्रतारूप ध्यान, –आवी अभिन्न
आराधनानुं फळ मोक्ष छे. ध्याता अने ध्येयनो पण त्यां भेद रहेतो नथी; द्रव्य–पर्यायनी
एकता थई त्यां द्रव्य ध्येय अने पर्याय ध्याता–एवा पण भेद रहेतो नथी. –आवी अभेद
उपासनावडे आत्मा परमात्मा थई जाय छे.
जुओ, भाई! एकवार आ वातनो अंतरमां निर्णय तो करो....जेने मार्गनो निर्णय
साचो हशे तेना नीवेडा आवशे, पण मार्गनो ज निर्णय नहि करे ने विपरीत मार्ग मानशे तो
अनंतकाळे पण नीवेडा नहि आवे. अरे! आवो अवतार पामीने जींदगीमां सत्य मार्गना
निर्णयनो पण अवकाश न ल्ये तो तेणे जीवनमां शुं कर्यु? मार्गना निर्णय वगर तो जीवन
व्यर्थ छे. माटे आत्माना हित माटे मार्गनो निर्णय करवो जोईए. निर्णय करे तेनुं पण जीवन
सफळ छे. जेणे यथार्थ मार्गनो आत्मामां निर्णय करी लीधो छे ते क्रमेक्रमे ते मार्गे चालीने
मुक्ति पामशे.
आ रीते आत्मस्वरूपनी आराधनाथी ज मुक्ति थाय छे–माटे तेनी ज भावना करवी. ।। ९८।।
अनंत चैतन्यवैभववाळा आत्माने जेणे जाण्यो तेणे
चौद ब्रह्मांडना सारने जाणी लीधो. अहा, आत्माने जाणवामां
अंतर्मुख उपयोगनो अनंत पुरुषार्थ छे; तेमां तो मोक्षमार्ग
आवी जाय छे. स्वमां जे सन्मुख थयो; तेणे परथी साची
भिन्नता जाणी, एटले खरूं भेदज्ञान थयुं. आवी दशा होय ते
जीव धर्मी छे, –भले ते गृहस्थपणामां होय.