निर्विकल्प थईने आवो अनुभव थाय छे. पण अशुद्धताना के शुद्धताना विकल्पो कर्या
करे के ‘हुं आवो छुं–हुं आवो छुं’ त्यां सुधी विकल्पना कर्तृत्वमां रोकायेला ते जीवने
चैतन्यना सुखनो अनुभव थतो नथी. अंतर्मुख निर्विकल्पपरिणाम नथी करतो त्यांसुधी
क््यांक विकल्पना कर्तृत्वमां रोकायेलो छे. विकल्पमां साचो आत्मा विषयरूप थतो नथी,
उपयोग अंतरमां वळे त्यारे ज आत्मा यथार्थस्वरूपे विषयरूप थाय छे. उपयोग
विकल्पमां अटके छे त्यांसुधी आत्मा लक्षगत थतो नथी. तेथी कहे छे के विकल्पमां
आकुळता छे–दुःख छे, तेमां निर्विकल्प सुख अनुभवातुं नथी. वस्तुमात्रने ज्ञानमां
अनुभवतां विकल्प मटे छे ने परमसुख थाय छे.
छे त्यां कोई कल्पना रहेती नथी, विकल्प रहेता नथी. झीणुं कहो के सरल कहो–
वस्तुस्वरूप आवुं ज छे. भगवाने जेवो आत्मा जोयो तेवो आत्मा अंतरमां जोवा आ
जीव जाय त्यारे गुणभेदना विकल्पो तेने रहेता नथी; समरसस्वरूप अतीन्द्रिय
आनंदना वेदनसहित आत्मा देखाय छे. विकल्पो ते विषमभाव छे; विषमभावमां
आत्मा देखातो नथी, शांतचित्तरूप समभाव (निर्विकल्पभाव) मां आत्मा साक्षात्
देखाय छे–अनुभवाय छे. ने आवो अनुभव करनारा जीवो ज परम सुखी छे. –आमां
वीतरागभावरूप धर्म छे.