Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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मागशर २४९४ : आत्मधर्म : ११
वस्तुमां तन्मय उपयोग थयो त्यां विकल्प छूटी गया ने अभेद अनुभूति थई. –ते
वखते शांतचित्त थयेलो ते जीव चैतन्यना साक्षात् अमृतने पीए छे. –तेमां
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र समाय छे.
एक सत्त्वने अनेक प्रकारे कल्पनामां लेतां पक्षपात थाय छे–विकल्प थाय छे; ते
अनेकरूप कल्पनाथी रहित थईने उपयोग ज्यां एकरूप वस्तुमां एकाग्र थयो त्यां
शुद्धस्वरूप अनुभवाय छे ने निर्विकल्प शांतरस उल्लसे छे. आवो अनुभव थयो त्यारे
सम्यग्दर्शन थयुं, त्यारे परमार्थदर्शन थयुं ने त्यारे मोक्षमार्ग खूल्यो. तेथी आवो
अनुभवशील जीव परम सुखी छे.
अरे, आ आत्मानी पोतानी अंदरनी वात, ते केम न समजाय? पोतानुं जेवुं
शुद्ध स्वरूप छे तेवुं ज्यां लक्षमां आवे त्यां विकल्प छूटी जाय छे ने निर्विकल्प
अनुभवमां अतीन्द्रिय आनंद थाय छे. ए आनंदना स्वादमां कोई रागनी–विकल्पनी
अपेक्षा नथी. ए आनंदनो अनुभव पोताना स्वसंवेदन ज्ञानमां प्रत्यक्ष छे, ईन्द्रियोनुं
तेमां आलंबन नथी, मनना विकल्पोनी तेमां अपेक्षा नथी. आवो अनुभव ते महान
सुख छे.
आत्मानो स्वभाव मोह रहित छे. ते मोह रहित छे–ए वात साची, पण ‘मोह
रहित छुं’ एवो तेनो विकल्प ते कांई आत्मा नथी, ते विकल्पना परिणमनमां ऊभो
रहीने आत्मा अनुभवातो नथी. अकर्ता–अभोक्ताना विकल्पोवडे अकर्ता–अभोक्तारूप
परिणमन थतुं नथी. पण विकल्पथी जुदो पडीने वस्तुमां जतां अकर्ता–अभोक्तारूप
परिणमन थई जाय छे. विकल्पथी जुदो उपयोग अंतरमां साक्षात् शुद्धात्माने संचेते छे–
अनुभवमां ल्ये छे. आवो अनुभव ते धर्म छे; ने आवो एकक्षणनो धर्म केवळज्ञानने
शीघ्रपणे बोलावे छे के झट आव!
मोहरहितना विकल्पमां अटकवुं ते पण मोह ज छे. ते विकल्पमां अटकेला जीवने
अनुभवरूप परिणमन थतुं नथी पण मोहरूप परिणमन थाय छे. वस्तुने अनुभवमां
ल्ये तो विकल्प तूटीने आनंद अनुभवाय. भाई, शेमां ऊभो रहीने तारे वस्तुने
अनुभवमां लेवी छे?–तो एम अनुभव नहि थाय. विकल्पमां वस्तु नहि अनुभवाय;
वस्तु तो वस्तुमां सीधो उपयोग जोडतां अनुभवाशे. विकल्पमां शुद्ध वस्तुनुं परिणमन