Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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१४ : आत्मधर्म : मागशर २४९४
साची रुचिना प्रयत्न वडे एवो अनुभव जरूर थाय छे. खरो आत्मार्थी एवा द्रढ
निश्चयवाळो होय छे के अंर्तद्रष्टिथी आत्माने देख्ये छूटको, त्यां सुधी बहार नीकळवुं
नथी, रुचिने बीजे क््यांय जवा देवी नथी. एकधारो आवो प्रयत्न करनारने
आत्माना आनंदनी प्राप्ति जरूर थाय छे. आ अंतरना उग्र प्रयत्न वगर आत्मा
अनुभवमां आवे नहीं. भाई, विकल्पातीत भगवान आत्मा, आनंदनो नाथ, तेने
तें पूर्वे कदी अनुभवमां लीधो नथी, तेने अनुभवमां लेवानो आ अवसर छे. माटे हे
वालीडा! अत्यारे तुं आळस करीश नहीं, प्रमादी थईश मा.
(आत्मवैभव)
आत्मानी पर्यायने अंदरमां वाळीने जे आत्माना आनंदनुं वेदन आवे, ते
वेदन करनार जीव तत्त्ववेदी छे.
चैतन्यने स्पर्शतां विकल्प तूटतां आनंदनुं वेदन रह्युं, आ ज धर्मी जीवनुं
वेदन छे.
अहा, चैतन्यना आनंदनी वात अंतरना प्रेमथी जीवे कदी सांभळी नथी.
विकल्पना वेदनमां ऊभो छे त्यांथी खसीने चैतन्यना वेदनमां ज्यांसुधी न
आवे त्यांसुधी निर्विकल्प आनंदनो अनुभव थाय नहि, ने विकल्पनुं
कर्तापणुं छूटे नहि.
चैतन्यना आनंदमां प्रवेश करवानी आ वात छे.
विकल्प के जे पोताना स्वभावनी चीज नथी, तेना वडे स्वभावमां प्रवेश
थई शके नहीं, चैतन्यभाव वडे ज चैतन्यमां प्रवेश थई शके.
धर्मी जीव चैतन्यभाववडे पक्षातिक्रान्त थईने पोताना शुद्धस्वरूपने वेदे छे.
विकल्पनो स्वाद ने चैतन्यनो स्वाद ज अत्यंत जुदो छे; चैतन्यनो स्वाद
अत्यंत मधुर शांतरसमय छे; विकल्पनो स्वाद आकुळतामय छे.
चैतन्यस्वभावना लक्षे जे ऊपाडयो ते चैतन्य परिणामने एकाग्र करीने
आनंदने अनुभवशे...तेमां विकल्पनो अभाव छे. –आवी अनुभूति ते
धर्मीनुं वेदन छे. अंदरमां आवी अनुभूति वगर कोई धर्म थवानुं माने तो
ते कल्पनामात्र छे.
विकल्पमां ऊभो रहीने करेलो निर्णय ते साचो निर्णय नथी; स्वरूपसन्मुख
थईने करेलो निर्णय ते साचो निर्णय छे. एवो निर्णय करीने धर्मी निर्विकल्प
थईने आत्माना आनंदने अनुभवे छे. –ए तत्त्ववेदी धर्मात्मानुं अपूर्व
वेदन छे. (कळश टीका–प्रवचनमांथी)