Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 45

background image
मागशर २४९४ : आत्मधर्म : १५
आत्मानो धंधो.आत्मानी क्रिया
आत्माने लाभनो धंधो एटले के लाभनो वेपार शुं छे? ने
आत्माना हितनी खरी क्रिया तथा तेनुं साधन शुं छे ते अहीं
सुगम शैलीथी समजाव्युं छे.
हे जीव! तुं एम विचार के मारे मारा आत्मानो धंधो करवो छे, बहारनो
धंधो करवो नथी. बहारनो धंधो आत्मामां नथी. जेना वेपारथी एटले के जेमां
उपयोगने जोडवाथी आत्माने आनंदनो लाभ थाय एवो वेपार मारे करवो छे.
बहारमां उपयोग भमावतां तो अनंतकाळ वीत्यो पण आनंद न मळ्‌यो, माटे हे
जीव! हवे तारा उपयोगनो अंतरमां जोड. भाई, तारी चैतन्यवस्तुनो अपार
महिमा छे. अंतरमां नजर करीने तारी चैतन्यचीजने देख तो खरो! अरे, पोते
पोताने न देखे–ए केवी वात! चैतन्यवस्तुने जे नथी देखतो तेणे आत्माने खरेखर
मान्यो नथी.
शरीर वगेरे अजीवनी साथे आत्माने कर्ताकर्मपणुं जे माने तेणे अजीव
साथे आत्मानी एकता मानी एटले के आत्माने अजीव मान्यो.
रागादि विकार साथे आत्माने कर्ताकर्मपणुं जे माने तेणे आत्मा अने
आस्रवने एक मान्या; एटले आत्माने अशुद्ध ज मान्यो.
आत्मामां क्रियाशक्ति छे ए खरुं, पण ते शक्ति एवी नथी के जडनी
क्रियाने के रागनी क्रियाने करे. ए क्रियाशक्ति वडे तो आत्मा पोताना
स्वभावभूत कारकोने अनुसरतो थको निर्मळ भावरूपे परिणमे छे. ते
निर्मळभाव साथे आत्माने एकता छे एटले तेमां ज कर्ताकर्मपणुं छे.
एवी ज रीते कर्ता–कर्मनी जेम साधनमां पण समजवुं. जडनी क्रियाने जेणे
पोतानी पर्यायनुं साधन मान्युं तेणे आत्माने जडथी भिन्न न