मागशर २४९४ : आत्मधर्म : २७
(२०९) मोक्ष थवा माटे प्रत्यक्ष ज्ञानीनी आज्ञा आराधवी जोईए. (२००)
(२१०) शास्त्रोमां मार्ग कह्यो छे, मर्म कह्यो नथी; मर्म तो सत्पुरुषना अंतरमां रह्यो छे. (प८)
(२११) जिनपद निजपद एकता,
भेदभाव नहि कांई;
लक्ष थवाने तेहनो,
कह्यां शास्त्र सुखदाई. (९प४)
(२१२) वीतरागश्रुत, परमशांतरसप्रतिपादक वीतरागवचनोनी अनुप्रेक्षा वारंवार कर्तव्य
छे. (२प६)
(२१३) कोई पण रीते शास्त्राभ्यास हशे तो कंई पात्र थवानी जिज्ञासा थशे, अने काळे
करीने पात्रता पण मळशे. (१३९)
(२१४) सत्धर्मनो जोग सत्पुरुष विना होय नहीं, कारणके असत्मां सत् होतुं नथी. (२४९)
(२१प) सजीवनमूर्ति प्राप्त थये ज सत् प्राप्त थाय छे, सत् समजाय छे, सत्नो मार्ग मळे
छे, सत् उपर लक्ष आवे छे. सजीवनमूर्तिना लक्ष वगर जे कांई पण करवामां आवे छे ते जीवने
बंधन छे. आ अमारुं हृदय छे. (१९८)
(२१६) बीजुं कांई शोध मा. मात्र एक सत्पुरुषने शोधीने, तेना चरणकमळमां सर्व भाव
अर्पण करी दई, वर्त्यो जा. पछी जो मोक्ष न मळे तो मारी पासेथी लेजे. (७६)
(२१७) शास्त्रादिकना ज्ञानथी नीवेडो नथी, पण अनुभवज्ञानथी नीवेडो छे. (२७०)
(२१८) सर्व प्रकारनी क्रियानो, योगनो, जपनो, तपनो, अने ते सिवायना प्रकारनो लक्ष
एवो राखजो के–आत्माने छोडवा माटे सर्वे छे, बंधन माटे नथी. (१८३)
(२१९) सत्पुरुषनी आज्ञामां वर्तवानो जेनो द्रढ निश्चय वर्ते छे, अने जे ते निश्चयने
आराधे छे, तेने ज ज्ञान सम्यक् परिणामी थाय छे, –ए वात आत्मार्थी जीवे अवश्य लक्षमां
राखवा योग्य छे. अमे जे आ वचन लख्यां छे तेनां सर्व ज्ञानीपुरुषो साक्षी छे. (७१९)
(२२०) ‘एकने जाण्यो तेणे सर्व जाण्युं; जेणे सर्वने जाण्युं तेणे एकने जाण्यो. ’
–आ वचनामृत एम उपदेशे छे के एक आत्मा ज्यारे जाणवा माटे प्रयत्न करशे, त्यारे सर्व
जाण्यानुं प्रयत्न थशे, अने सर्व जाण्यानुं प्रयत्न एक आत्मा जाणवाने माटे छे. (६४)
(२२१) सर्व पदार्थनुं स्वरूप जाणवानो हेतु मात्र एक आत्मज्ञान करवुं ए छे. जो
आत्मज्ञान न थाय तो सर्व पदार्थना ज्ञाननुं निष्फळपणुं छे. (प६९)
(२२२) आत्मा अत्यंत सहज अवस्था पामे, ए ज सर्व ज्ञाननो सार श्री सर्वज्ञे कह्यो
छे. (प९३)
(२२३) ‘ज्ञाननुं फळ विरति छे’ –वीतरागनुं