Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 33 of 45

background image
३० : आत्मधर्म : मागशर २४९४
* एम अनुभवमां आवे छे के खरेखरो मुमुक्षु होय तेने सत्पुरुषनी ‘आश्रयभक्ति’
अहंभावादि छेदवाने माटे अने अल्पकाळमां विचारदशा परिणाम पामवाने माटे उत्कृष्ट
कारणरूप थाय छे.
* लौकिक मानआदिनुं तुच्छपणुं समजवामां आवे तो तेनी विशेषता न लागे.
* मांडमांड आजीविका चालती होय तो पण मुमुक्षुने ते घणुं छे.
* परमार्थ आत्मा शास्त्रमां वर्ततो नथी, सत्पुरुषमां वर्ते छे. (७०६) (चालु)
प्रश्न:– चोथा गुणस्थाने निर्विकल्प अनुभूति होय? अतीन्द्रिय
आनंद होय? निश्चय सम्यक्त्व होय? अतीन्द्रियज्ञान
होय?
उत्तर:– हा; ए चारे परम वस्तु पूर्वक ज चोथुं गुणस्थान प्रगटे
छे. ते वखते निर्विकल्पअनुभूति हो्य छे, ते वखते
अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन होय छे; ते वखते निश्चय
सम्यक्त्व थयुं छे, ने ज्ञानमां ईंद्रियोनुं अवलंबन छूटीने
अंशे अतीन्द्रियपणुं थयुं छे. निर्विकल्पअनुभूति सदाकाळ
भले न होय पण चोथुं गुणस्थान प्रगटवाना काळे तो
जरूर होय छे. –आ चार वस्तु वगर धर्म के मोक्षमार्गनी
शरूआत थती नथी, साधकपणुं थतुं नथी. एना वगर
पण जे चोथुं गुणस्थान माने तेने धर्मनी के चोथा
गुणस्थाननी पण खबर नथी, एटले के सम्यग्दर्शननी
खबर नथी; ‘सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग
तेणे जाण्यो नथी.
“केलि करे शिवमारगमें...
जगमांही जिनेश्वरके लघुनंदन.”
– एवा सम्यग्द्रष्टिओने वंदन.