कारणरूप थाय छे.
* मांडमांड आजीविका चालती होय तो पण मुमुक्षुने ते घणुं छे.
* परमार्थ आत्मा शास्त्रमां वर्ततो नथी, सत्पुरुषमां वर्ते छे. (७०६) (चालु)
होय?
अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन होय छे; ते वखते निश्चय
सम्यक्त्व थयुं छे, ने ज्ञानमां ईंद्रियोनुं अवलंबन छूटीने
अंशे अतीन्द्रियपणुं थयुं छे. निर्विकल्पअनुभूति सदाकाळ
भले न होय पण चोथुं गुणस्थान प्रगटवाना काळे तो
जरूर होय छे. –आ चार वस्तु वगर धर्म के मोक्षमार्गनी
शरूआत थती नथी, साधकपणुं थतुं नथी. एना वगर
पण जे चोथुं गुणस्थान माने तेने धर्मनी के चोथा
गुणस्थाननी पण खबर नथी, एटले के सम्यग्दर्शननी
खबर नथी; ‘सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग
तेणे जाण्यो नथी.
जगमांही जिनेश्वरके लघुनंदन.”