मागशर २४९४ : आत्मधर्म : ३१
वांचको साथे वातचीत अने तत्त्वचार्
(सर्वे जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग)
प्रश्न:– अलोकाकाशमां अंधारुं छे के अजवाळुं? (No. 465)
उत्तर:– बेमांथी एक्केय न होय. अलोकाकाश ए अरूपी वस्तु छे; अंधकार के
प्रकाश ए बंने तो रूपी पुद्गलनी पर्यायो छे, एटले अरूपी आकाशमां ते क्यांथी होय?
अलोकाकाशमां पुद्गलनो ज अभाव छे, तो पुद्गलजन्य अंधकार के प्रकाश त्यां केम होय?
–ए ज रीते अरूपी आत्मामां पण अंधारुं के अजवाळुं नथी. हा, ज्ञानप्रकाशनी अपेक्षाए
आत्मामां प्रकाश कहेवो होय तो कहेवाय.
प्र:– अरिहंत भगवानने शरीर शा माटे छे? (No. 180 चेतनाबेन)
उ:– केमके तेओ हजी ‘सिद्ध–थया नथी.
प्र:– हुं माराथी थाय एटलो पुरुषार्थ करुं छुं छतां ज्ञान केम नथी थतुं? (No. 979)
उ:– ज्ञान माटे ज्ञाननी जातनो पुरुषार्थ करीए तो ज्ञान जरूर थाय. रागना
पुरुषार्थ वडे ज्ञान न थाय.
प्र:– चक्रवर्ती छ खंडनो दिग्विजय करे छे ते छ खंड कया? (No. 172)
उ:– आ माटे मोक्षशास्त्रमां जंबुद्वीपना नकशामां भरतक्षेत्र छे–ते जोशो तो ख्याल
आवशे. आ भरतक्षेत्रनी वच्चे विजयार्द्ध पर्वत छे (जे पूर्वथी पश्चिम दिशामां छे, ने वच्चे
लाईन करी होय तेम भरतक्षेत्रना बे भाग करे छे; तथा गंगा अने सिंधु नामनी बे मोटी
नदी उत्तरथी दक्षिण तरफ वहे छे, ते बे नदीने कारणे उपरोक्त बंने भागोमांथी दरेकना
त्रण त्रण खंड थई जाय छे–आ रीते भरतक्षेत्रना छ खंड थाय छे. आ समजवा माटे तमे
एक कागळमां तमारा हाथे अर्धगोळ करो. पछी तेमा पूर्व पश्चिम छेडे एक सळंग लीटी
दोरो तथा बीजी बे लाईन उत्तर ने दक्षिण छेडा वच्चे करो–एटले छ भाग समजाई जशे.
बाकी तो महापुराण वगेरेमां तेनुं वर्णन विस्तारथी आवे छे, ते वांचशो.