Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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मागशर २४९४ : आत्मधर्म : ३३
बधा सम्यग्द्रष्टिने होय ज एवो कांई नियम नथी. जातिस्मरणज्ञानमां मात्र पूर्वना एक ज
भवनुं नहि पण अनेक भवोनुंय ज्ञान कोईने होई शके छे. जातिस्मरण संबंधमां एक एवी
मर्यादा छे के वच्चे ज्यां असंज्ञीपणानो भव आवी जाय तो त्यांथी आगळनुं स्मरण थई शके
नहि; केमके वच्चे असंज्ञीपणुं आवी जतां पूर्वनी धारणा चालु रही शके नहीं. धर्मसंबंधी
जातिस्मरणज्ञान ते विशेष वैराग्यनुं कारण थाय छे. घणा तीर्थंकरो जातिस्मरणज्ञान थतां ज
संसारथी विरक्त थया छे. बधाय तीर्थंकरोने अवधिज्ञान तो जन्मथी होय ज, केटलाक
आराधक जीवो पण एक भवमांथी बीजा भवमां अवधिज्ञान साथे लईने जाय. पण
जातिस्मरणज्ञान कोईने जन्मथी न होय. ए तो नवुं थाय छे. जातिस्मरणज्ञानवाळाने
पोताना पूर्वभवनो ख्याल आवे छे, परंतु बीजा जीवोना पूर्वभवोनो पण तेने ख्याल आवी
ज जाय एवो कोई नियम नथी. –आवे पण खरो.
संवरतत्त्वनी पूर्णता क्यारे? चौदमा गुणस्थानना पहेला समये.
निर्जरातत्त्वनी पूर्णता क्यारे? चौदमा गुणस्थानना छेल्ला समये.
पोलीस सरवीसमां उच्च होदे धरावनार भाईश्री छबीलदासभाई लखे छे– “आपे
मोकलावेल ‘दर्शन कथा’ पुस्तक वांच्युं; पुस्तक घणुं ज सुंदर छे, तथा धार्मिकसंस्कारो माटे घणुं
ज आदर्शरूप लागेल छे...पू. गुरुदेव पासे छेवटनुं जीवन पसार करवानी हृदयनी भावना
छे...आ अशरण संसारमां आपणे बधा साथे सिद्धपदने आराधीए–ए ज भावना छे.”
(बालविभागना स्वर्गस्थ सभ्य बेन ईन्दिराना आ पिताजी छे.)
प्र:– निश्चयनय अने व्यवहारनयमां शुं तफावत छे?
उ:– निश्चयनय स्वाश्रित छे, ने व्यवहारनय पराश्रित छे; अथवा वधारे सूक्ष्मताथी
कहीए तो, निश्चयनय आत्माना शुद्ध भूतार्थ स्वभावने देखे छे, ने व्यवहारनय अशुद्ध–
अभूतार्थ भावोने देखे छे; तेथी निश्चयनयनो आश्रय करवा जेवो छे ने व्यवहारनयनो
आश्रय छोडवा जेवो छे. आ संबंधमां कुंदकुंदाचार्यदेवे समयसारमां कहेल सिद्धांत सुप्रसिद्ध
छे के–
“निश्चयनयाश्रित मुनिवरो प्राप्ति करे निर्वाणनी”
तेमज–
व्यवहारनय अभूतार्थ दर्शित, शुद्धनय भूतार्थ छे,
भूतार्थने आश्रित जीव सुद्रष्टि निश्चय होय छे. (११)
उपरनी गाथामां आचार्यदेवे बंने नयोनुं स्वरूप समजावीने धर्म साधवानो महा
सिद्धांत रजु कर्यो छे.