Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९४ आत्मधर्म : ७:
आत्मानी खरी खटक होय तो...
(वीतरागी सन्तोनो मोटो उपकार)
कोई कहे के आत्मा समजवा माटे अमने निवृत्ति नथी. मळती; –तो तेने कहे छे के भाई,
तारी वात जूठी छे, तने आत्मानी खरी रुचि नथी एटले तुं बहानुं काढे छे. तने विकथानो तो
वखत मळे छे, ऊंघवानो ने खावानो वखत तो मळे छे! ने आत्माना विचार माटे वखत नथी
मळतो? आत्मानी खरी खटक होय तो तेने माटे बीजानो रस छोडीने वखत काढ्या वगर रहे ज
नहीं. भाई! आवा अवसर फरीफरी नथी मळता. आत्मानो जेवो स्वभाव छे तेवो समजीने
श्रद्धा करवी, तेनो रस करवो तेमां ज सुख छे, बाकी तो संसारना बाह्य भावोमां दुःख दुःख ने
दुःख ज छे. अहा, जे आत्मस्वभावनी प्रेमथी वात करतां पण आनंद आवे तेना साक्षात्
अनुभवना आनंदनी शी वात! माटे हे जीव! दुःखथी छूटवा ने आनंदित थवा तुं आत्मामां ‘हुं
शुद्ध चिंदानंद छुं’ –एवी श्रद्धाना संस्कार पाड. जेणे साची श्रद्धा करी तेणे आत्मामां मोक्षना
मंगल स्थंभ रोप्या. सम्यग्दर्शन कर्युं ते अल्पकाळमां मोक्षपुरीनो नाथ थशे.
कहेवाय छे के ‘द्रष्टिए दोलत प्रगटे. ’ –कई द्रष्टि? शुद्ध आत्माने देखनारी द्रष्टि, तेना वडे
केवळज्ञानादि अनंत गुणनी दोलत प्रगटे छे. अरे, रुचिना अभावे पोताने पोतानो स्वभाव ज
कठण लागे छे, ने बाह्य विषयोनी रुचि छे एटले ते सहेलुं लागे छे. –ए तो जीवनी रुचिनो ज
दोष छे. रुचि करे तो आत्मानी समजण सुगम छे. आ काळे स्वरूपनो अनुभव कठण छे–एम
कहीने जे तेनी रुचि छोडी दे छे ते बहिरात्मा छे. जेने जेनी रुचि अने जरूरीयात लागे तेनी
प्राप्तिमां तेनो प्रयत्न वळे ज. जेने आत्मानी रुचि खरेखर होय तेनो प्रयत्न आत्मा तरफ वळे
ज. बाकी रुचि करे नहि, ज्ञान करे नहि अने रागने धर्मनुं नाम आपी द्ये तेथी ते राग कांई धर्म
न थई जाय. कडवा करीयाताने कोई ‘साकर’ नुं नाम आपीने खाय तोपण ते कडवुं ज लागे;
तेम रागने कोई धर्म माने तोपण ते रागनुं फळ तो संसार ज आवे, तेनाथी कांई मोक्ष न थाय.
जेवो पुरुषार्थ करे तेवुं कार्य प्रगटे. स्वभावनो पुरुषार्थ करतां सम्यग्दर्शनादि स्वभावकार्य प्रगटे;
अने रागनो पुरुषार्थ करतां पुण्य–पाप थाय पण धर्म न थाय.