:८: आत्मधर्म : पोष : २४९४
पुरुषार्थ करे रागनो ने फळ मागे धर्मनुं, –ए क्यांथी मळे? आत्मानो जेवो स्वभाव छे तेवो
द्रष्टिमां लईने तेनी सन्मुख परिणमे ते जीवने अल्पकाळमां मोक्षप्राप्ति थशे थशे ने थशे.
सर्वज्ञपरमात्मानी वाणी झीलीने कुंदकुंदाचार्यदेवे तेनुं रहस्य आ परमागमोमां उतार्युं छे.
‘जिनदेव आम कहे छे’ –एम भगवाननी साक्षी आपीने तेमणे आत्मस्वभावने प्रसिद्ध कर्यो छे.
अने तेमना पछी एकहजार वर्षे अमृतचंद्राचार्य थया तेमणे पण ‘भवसमुद्रनो किनारो जेमने
नीकट छे एवा कुंदकुंदाचार्यदेव’ –एम कहीने तेमना हृदयनुं रहस्य टीकामां खोल्युं छे. अहा, ए
वीतरागी दिगंबर सन्तोनो मुमुक्षु जीवो उपर मोटो उपकार छे.
अरे अावुं मिहमावंतु अात्मतत्त्व, ते साधवानी जीवोने नवराश
केम नथी मळती? बीजा प्रयोजन वगरनी उपाधिमां लाग्यो रहे छे,
पण भाई! तारा आत्मानी अद्भुता तो देख! अहो, चैतन्यनो
कोई अद्भुत आनंदकारी स्वभाव छे; जगतनी जेमां उपाधि नथी ने
पोताना निजानंदमां केली करतुं जे परिणमी रह्युं छे. एवा तारा
चैतन्यतत्त्वने अंतरमां जाे.
अहा, अनंतशक्तिवाळा आत्माने जे लक्षमां ल्ये तेने विकारनो प्रेम
केम रहे? जेने मोक्षनी लगनी छे, जेने आत्माना वैभवनी लगनी
छे, अनुभवनी धगश छे, एवा मोक्षार्थी जीवने आचार्यदेवे परम
करुणाथी आत्मवैभव देखाड्यो छे. स्वानुभूति वडे आवो
आत्मवैभव प्राप्त थाय छे.