Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९४ आत्मधर्म : ९:
अनुभवनी उत्तम वात
(आ संबंधी बे लेख गतांकमां पृष्ठ १० तथा १७ मां प्रगट थया छे.)
(कारतक वद १० समयसार कलश ९० ना प्रवचनमांथी)
ज्ञानस्वरूप आत्मा निर्विकल्पस्वरूप छे; तेने अनुभवमां लेवानी रीत शुं छे? ते वात
आत्मा स्वभावथी अबंध छे; पण पर्यायना विकल्पमां ऊभो रहीने ‘अबंध छुं’ एवो जे
अबद्ध–शुद्धआत्मा तेमां परिणमन थतां, अबद्ध छुं–एवा विकल्पनुं परिणमन व्यय पामे
सम्यग्दर्शन ते शांत–समरसी परिणमन छे; वस्तुमां अभेद परिणमन थतां एवुं
हुं शुद्ध छुं–अबद्ध छुं–प्रत्यक्ष छुं एम खरुं लक्ष क्यारे थ्युं? के पर्याय अंतरमां वळी त्यारे.
पर्याय, पर्यायना लक्षमां रहेती नथी, पर्याय, द्रव्यना लक्षमां जाय छे ने तेमां एकाग्र थतां
विकल्पनुं कर्तृत्व छूटी जाय छे. पर्याय पर्यायना ज लक्षमां रह्या करे ने अंतर्मुख द्रव्यना लक्षमां न
आवे त्यांसुधी सम्यक्त्व थाय नहि ने विकल्पनुं कर्तृत्व छूटे नहीं. विकल्पनो खखडाट लईने अंदर
शांत–समरसभावमां जई शकाय