Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९४ आत्मधर्म :१३:
जीव, स्वयं पोताथी ज सिद्धपद पामे छे, कोई बीजा बाह्यसाधनने लीधे सिद्धपद नथी पामतो,
संस्कृतमां लखे छे के मोक्ष कई रीते पामे छे? –के
‘स्वत एव आत्मनैव परमार्थतो न पुनः
गुरुआदि बाह्यनिमित्तात्’ अर्थात् पोताथी–पोताना आत्माथी ज परमार्थे मोक्ष पामे छे, नहि के
जेने पोताने मोक्षपद साधवुं छे, तो तेवा मोक्षपदने पामेला (अरिहंतो ने सिद्धो) तथा
तेने साधनारा (साधुमुनिराज वगेरे) जीवो केवा होय तेनी ओळखाण तो तेने होय ज. एनाथी
विपरीत तरफ तेनो भाव झुके नहि. पण अहीं तो एनाथी आगळ वधीने ठेठ आराधनानी
पूर्णतानी उत्कृष्ट वात छे. साचा देव–गुरुने ओळख्या पछी पण तेमना ज लक्षे रागमां रोकाई
रहेतो नथी पण एमना जेवा निजस्वरूपना अनुभवमां एकाग्र थईने मोक्षने साधे छे. जेटली
निजस्वरूपमां एकाग्रता तेटलो मोक्षमार्ग. अहो, एकला स्वाश्रयमां मोक्षमार्ग समाय छे.
अंशमात्र पराश्रय मोक्षमार्गमां नथी. मोक्षमार्गमां परनो आश्रय माने तेणे साचा मोक्षमार्गने
जाण्यो नथी. भाई, परना आश्रये मोक्षमार्ग मानीश तो तेनुं लक्ष छोडीने निजस्वरूपनुं ध्यान तुं
क्यारे करीश? पर लक्ष छोडी, निजस्वरूपना ध्यानमां लीन थया वगर त्रणकाळमां कोईनो मोक्ष
थाय नहीं. –हजी आवो मार्ग पण नक्क्ी न करे ते तेने साधे क्यारे? मार्गना निर्णयमां ज जेनी
भूल होय ते तेने साधी शके नहीं. अहीं तो निर्णय उपरांत हवे पूर्ण समाधी प्राप्त करीने जन्म–
मरणना अभावरूप सिद्धपद थवानी वात छे. –ए ज साचुं समाधिसुख छे. “सादि अनंत अनंत
समाधि सुखमां, अनंत दर्शन ज्ञान अनंत सहित जो” –आवा निजपदनी प्राप्तिनो अपूर्वअवसर
आवे–एवी आ वात छे.
।। ९९।।
अर्हन्तमार्गमां मोक्षना उपायनुं यथार्थस्वरूप शुं छे ते बताव्युं ने तेना फळमां परमपदनी
प्राप्ति पण बतावी. हवे आवो यथार्थ मोक्षमार्ग बीजा कोई अन्य मतोमां होतो नथी, –ए वात
समजावे छे–
अयत्नसाध्यनिर्वाणं चित्तत्त्वं भूतजं यदि ।
अन्यथा योगतस्तस्मान्न दुःखं योगिनां क्वचित् ।।१००।।
चैतन्यतत्त्व आत्मा स्वतःसिद्ध, देहथी भिन्न तत्त्व छे, ते अविनाशी छे. आ
चैतन्यतत्त्व ‘भूत’ एटले के पृथ्वी–पाणी–अग्नि–वायु वगेरेथी उत्पन्न थयुं होय तो तो देहनी
उत्पत्ति साथे तेनी उत्पत्ति, अने देहना नाशथी तेनो नाश–एम थाय, एटले मोक्षने माटे कोई
यत्न करवानुं न रहे. देहना संयोगोथी आत्मा उपजे ने देहना वियोगथी आत्मा नाश पामे, –
देहथी जुदो कोई आत्मा छे ज नही–एम नास्तिक लोको माने छे;