परिणमतुं नथी. एवा अकर्ता ज्ञानने ओळखे तो ज ज्ञानीनी खरी ओळखाण थाय छे, ने
पोतानेय तेवुं ज्ञान प्रगटे छे.
एक साथे वर्ते छे, पण त्यां ज्ञानी तो ज्ञानरूपे ज पोताने जाणे छे, ने विकल्परूपे पोताने जाणता
नथी, एटले तेने विकल्पना काळेय ज्ञानमां विकल्पनुं कर्तृत्व नथी; विचारदशा वखतेय तेने ज्ञान
अने विकल्प बंने भिन्न भिन्न कार्य करी रह्या छे; ते वखतेय बंने एक थईने कार्य करता नथी. –
ज्ञानीनी आ वात खास समजवानी छे. ‘निर्विकल्पता वखते तो ज्ञानीनुं ज्ञान विकल्पथी जुदुं ज
छे, ने सविकल्पता वखते पण ज्ञानीनुं ज्ञान विकल्पथी जुदुं ज छे–ए वात लक्षमां लेवा जेवी छे.
निर्विकल्पअनुभवपूर्वक रागथी भिन्न ज्ञान परिणम्युं ते पछी साधकदशामां (सविकल्पदशा वखते
पण) सदाय जुदुं ज परिणमे छे. ते ज्ञान कदी पण विकल्पना कर्तापणे परिणमतुं नथी. आवा
अकर्ता ज्ञानने ओळखे तो ज ज्ञानीनी खरी ओळखाण थाय छे, ने पोतानेय तेवुं ज्ञान प्रगटे छे.
विकल्पने ज अनुभवतो थको ते तेनो कर्ता थाय छे. जेवा परिणामरूपे जे परिणमे ते परिणामनो
तेने कर्ता कहेवाय छे. ज्ञानपरिणामे परिणमतो ज्ञानी ज्ञाननो ज कर्ता छे, ने विकल्पपणे
परिणमतो अज्ञानी विकल्पने ज करवामां ऊभो छे. आत्माने जेवा स्वरूपे जाणे छे तेवा ज
स्वरूपे पोते परिणमे छे. आत्माने जेणे अशुद्ध ज (विकल्परूप–रागरूप) जाण्यो तो ते
शुद्धपरिणामने क्यांथी करशे? ते अशुद्धपरिणामनो ज कर्ता थईने तेवो पोताने अनुभवशे. ने
जेणे पोताना आत्माने शुद्ध आनंदझरतो ज्ञानमय जाण्यो ते अशुद्धतानो कर्ता केम थशे? ते तो
ज्ञान–आनंदरूपे परिणमतो थको तेनो कर्ता थईने तेवो ज पोताने अनुभवशे. जे जेनो कर्ता
थईने परिणमे तेनो ज तेने अनुभव थाय. रागनो कर्ता थाय तेने निर्विकल्प–आनंदनो अनुभव
थाय नहीं.