Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९४ आत्मधर्म :१९:
स्वभावनी सन्मुखतामां रागादिनुं कर्तृत्व रहेतुं नथी.
स्वभावथी विमुखपरिणाममां ज रागादिनुं कर्तृत्व छे.
ए रीते सम्यग्द्रष्टि अने मिथ्याद्रष्टि ए बंनेना परिणाममां घणो तफावत छे, तद्न जात
ज जुदी छे. एक ज्ञान, एक विकल्प, बंनेनी जात साव जुदी छे. जेम सूर्यनो प्रकाश थतां अंधकार
न रहे, तेम आत्मामां सम्यक्त्वरूप ज्ञानप्रकाश थतां तेमां विकल्पनुं कर्तृत्व रहेतुं नथी. अरे,
ज्ञानीथी विरुद्धभावनुं कर्तृत्व ज्ञानमां केम शोभे? ज्ञान विकल्परूपे थतुं नथी, छतां अज्ञानी
ज्ञानमां विकल्पनुं कर्तृत्व माने छे, ते कर्तृत्व आत्माने शोभतुं नथी, ज्ञाननो आदर न करतां
विकल्पनो आदर करे तेमां शोभा नथी, अशोभा छे–मिथ्यात्व छे.
शरीरना कर्तृत्वनी तो वात ज क्यां रही? पण ज्ञानमां रागनुं कर्तृत्व माने ते खरेखर
जैन नथी. जे ज्ञायकपणे आत्माने अनुभवे छे एटले शुद्धतारूपे परिणमे छे ते खरो जैन छे; ते
ज जिनना मार्गमां आव्यो छे एटले मोक्षना मार्गमां आव्यो छे.
ते मोक्षमार्गी जीव शुं करे छे? –के पोताना ज्ञान–आनंदरूप परिणामने करे छे,
–तेरूपे परिणमे छे; रागादिने पोताना ज्ञानपरिणामथी भिन्न जाणे छे– ‘जो जानै सो
जाननहारा’ जाणनार ते जाणनार ज रहे छे, ज्ञानी ज्ञानभावपणे ज परिणमे छे,
ज्ञानथी भिन्न विकल्पोमां कदी तन्मयरूप परिणमता नथी, तेने करता नथी. अहो, ज्ञान
अने विकल्पनी भिन्नतानी अद्भुत वात! –तेने पोतानी जाणीने प्रेमथी सांभळ तो खरो. आवुं
मारुं स्वरूप छे–एम लक्षमां तो ले. –ए लक्षमां लेतां अंदर रस्तो थई जशे.
चैतन्यनुं लोहचूंबक लगाडतां जे परिणाम आत्मामां खेंचाई आवे ते आत्माना खरा
(शुद्ध) परिणाम छे, ते परिणाम ज्ञान–आनंदनी पुष्टिरूप छे. जे परिणाम अंदर खेंचाई न आवे
ने बहार रहे ते रागादि अशुद्धपरिणामो खरेखर आत्माना नथी.
सविकल्पदशाना काळे पण ज्ञानीने ज्ञानमय भाव वर्ते छे, विकल्पथी जुदुं ज्ञान वर्ते छे.
ओछी शुद्धता हो, वधु शुद्धता हो ने पूरी शुद्धता थाय, ते शुद्धतानो जे भाव छे ते रागथी जुदो ज
छे; ते शुद्धता ज मोक्षनो मार्ग छे. स्ववस्तुना आश्रये शुद्धता छे; स्ववस्तुना अनुभव वगर
शुद्धता थाय नहि. आम बंनेने भिन्न जाणे त्यारे साचो अनुभव थाय ने मोक्षमार्ग प्रगटे.–
अनुभव रत्नचिंतामणि, अनुभव है रसकूप
अनुभव मारग मोक्षका, अनुभव मोक्षस्वरूप.
(स. कळश–९६)