: पोष : २४९४ आत्मधर्म :२१:
पोताना सामर्थ्य वडे शुद्धस्वरूपनो प्रकाश थयो.....परभावोमां ज्ञान ऊंघतुं ते हवे जागीने
परभावोथी जुदुं पड्युं ने आनंदना प्रवाह साथे परिणमवा लाग्युं.
ज्ञाननुं परिणमन तेने कहेवाय के जे ज्ञानस्वभावरूप होय. शुभाशुभविकल्पो ते ज्ञाननुं
परिणमन नथी. विकल्प वखतेय धर्मीनुं ज्ञान तो ज्ञानरूपे ज परिणमी रह्युं छे; ते शुद्धपरिणमन
छे, ने तेटलो ज मोक्षउपाय छे. एना सिवाय जे कोई शुभ–अशुभ चारित्ररूप विकल्पो छे ते
निजस्वभावरूप नथी एटले ते मोक्ष उपाय नथी; ते तो बंधनुं साधन ज छे.
शुभआचरणने चारित्र कहेवुं ते केवुं छे? –के कामळाना सिंह जेवुं.
जेम कामळामां चितरेलो सिंह ते खरो सिंह नथी,
तेम शुभरागरूप चारित्र ते खरूं चारित्र नथी.
जेम कामळामां चितरेलो सिंह कोईने मारतो नथी, तेम शुभरागरूप चारित्र कोईने तारतुं
नथी. शुद्धतारूप जे आचरण छे ते ज खरो मोक्षमार्ग छे.
अहा, क्षणभर परभावथी जुदो पडतां जे परम सुख अनुभवाय छे ते ज्ञानी ज जाणे
छे.....तो सर्वथा परभावना अभावथी जे पूर्ण सुख थाय–तेनी शी वात! चैतन्यभगवान
पोताना आनंदसमुद्रमां तरबोळ थाय छे. –जाणे आनंदनुं नंदनवन खील्युं! आनंदनी गूफामां
गरी गया त्यां बहारनुं (परभावनुं) वेदन रहेतुं नथी.
ज्ञान थयुं त्यारे आवी आनंददशा खीली.....ने मोक्षनी साधना शरू थई.
(स. कळश १११)
विदेहक्षेत्रमां विद्यमान तीर्थंकरपणे बिराजमान श्री सीमंधरभगवान,
जेमनी पासे सो ईन्द्रो भक्तिपूर्वक आवीने श्रवण करे, ते भगवान पासे जईने
कुंदकुंदाचार्यदेव आ अद्भुत आत्मवैभव लाव्या छे; पोते जाते अनुभवीने
भरत – क्षेत्रना जीवोने आ ‘आत्मवैभव’ आप्यो छे. – अद्भुत आनंदकारी
वैभव बतावीने तेमणे उपकार कर्यो छे.