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अस्थिर थईने कंपे छे, तेमां अशांति छे, थाक छे. दुनिया भले डोले, सिद्धो कदी कंपता नथी......
(२४२) ते वस्तुना विचारमां पहोंचो के जे वस्तु अतीन्द्रियस्वरूप छे.
(२४३) ज्ञानचर्चा अने विद्याविलासमां तथा शास्त्राध्ययनमां गुंथावुं.
(२४४) जेटला पोतानी पुद्गलिक मोटाई ईच्छे तेटला हलका संभवे.
(२४प) हे आर्य! अंतर्मुख थवानो अभ्यास करो.
(२४६) संसाररूपी कुटुंबने घेर आपणो आत्मा परोणा दाखल छे.
(२४७) ईन्द्रियोना निग्रहपूर्वक सत्समागम अने सत्श्रुत उपासनीय छे.
(२४८) खेद नहीं करतां, शूरवीरपणुं ग्रहीने ज्ञानीने मार्गे चालतां मोक्षपाटण सुलभ ज छे.
(२४९) सद्देवगुरुशास्त्रनी भक्ति अप्रमत्तपणे उपासनीय छे.
(२प०) नियमितपणे नित्य सद्ग्रंथनुं वांचन तथा मनन राखवुं योग्य छे.
(२प१) जे श्रुतथी असंगता उल्लसे ते श्रुतनो परिचय कर्तव्य छे.
(२प२) जे वाटेथी आत्मत्व प्राप्त थाय ते वाट शोधो.
(२प३) ज्यां–त्यांथी राग–द्वेष रहित थवुं ए ज मारो धर्म छे.
(२प४) बाह्य भावे जगतमां वर्तो अने अंतरंगमां एकांत शीतलीभूत निर्लेप रहो.
(२पप) उदासीनता ए अध्यात्मनी जननी छे.