Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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:३४: आत्मधर्म : पोष : २४९४
देडकानी वारता

(देडकामांथी देव)
राजगृहीनगरी घणी ज रळीयामणी.
श्रेणीकराजा त्यां राज करे. ते राजा
जैनधर्मना महान भक्त. अढी हजार वर्ष
पहेलांंनी वात छे. ए वखते भगवान
महावीर आ भरतभूमिमां विचरता
हता...ने धर्मनो उपदेश देता हता.
महावीरप्रभु एकवार
राजगृहीनगरीमां पधार्या.
माळीए आवीने राजाने समाचार
आप्या के आपणी नगरीमां प्रभु पधार्या छे.
श्रेणीकराजा तो ए सांभळीने
राजा तो हाथी उपर बेसीने भगवानने
वंदन करवा चाल्यो.
भों...भों....भूंम भूंम!
पों...पों....पूं....पूं...
वाजां वाग्या ने ढोल ढमक्या. राजानी
साथे हजारो नगरजनो दर्शन करवा चाल्या.
आ बधुं जोईने एक देडकानेय मन
थयुं के हुं पण भगवानना दर्शन करवा जाउं.
एटले मोढामां एक फूल लईने ए पण
उपड्युं भगवानना दर्शन करवा.
भक्तिभावथी ए तो दोड्युं जाय छे–
देडकुं देडकुं दोड्युं जाय,
मोढामां फूल लईने जाय;
वीर प्रभुने पूजवा जाय,
एने देखी आनंद थाय.