Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९४ आत्मधर्म :३७:
त्त्र्
(सर्वे जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग)
वांचकोना अंतरनी उर्मि
(ध्रांगध्राना आगेवान कार्यकार भाईश्री
केशवलाल डी. शाह (वकील) पोतानी उर्मि व्यक्त
करतां लखे छे के–
(१) श्रीमद् राजचंद्रजीनी जन्मशताब्दि
वखते आपणुं आ अध्यात्मपोषक मासीक
रजतजयंतीना वर्षमां मंगळ प्रवेश करे छे, ते शुभ
प्रसंगे अत्रेना समग्र वाचक अने मुमुक्षुओ हार्दिक
अभिनंदन पाठवे छे.
(२) ‘अनेकान्तनुं फळ सम्यक्एकांत
एवा निजपदनी प्राप्ति ’ –होवानुं अर्थगंभीर सूत्र
प्रसिद्ध करनार तेओश्री परत्वे, तेमज आवा
अनेक गूढ सिद्धांतोने सामान्य जिज्ञासु सरलताथी
समजी शके तेवी अमृतवाणीनो प्रवाह पूज्य
गुरुदेव प्रत्यक्ष वहेवडावी रहेल छे तेओश्री परत्वे,
अमो तमाम अत्यंत भक्तिभावे सादर वंदन
करीए छीए.
(३) आ क्षणभंगुर दुनियामां
सत्पुरुषनो समागम थवो ते एक अमूल्य अने
अनुपम लाभ छे; परंतु अमारा जेवा देश–
विदेशना जिज्ञासुओ–जे प्रत्यक्ष लाभ नथी लई
शकता तेमना माटे आपणुं आ मासीक बराबर
अवेजी पूरे छे; आ मासीक महान कल्याणनुं एक
बळवान निमित्त छे. आ मासीक क्रमश: वृद्धि पामे
अने नियत समये सुवर्ण तथा हीरक जयन्तीओ
पूज्यश्री गुरुदेवनी छत्रछायामां उजववा
मदाया (बरमा) थी बालसभ्यो दीनेश
अने मीनाबेन लखे छे के–अमने अहीं ऋषभदेव
भगवाननुं जीवनचरित्र मळ्‌युं छे ते वांची अमने
घणो ज आनंद थाय छे. आवा अनार्य देशमां
अमने आवुं शास्त्र मळ्‌युं–अहो! अमारा भाग्य!
तमारो घणो उपकार मानीए छीए. गुरुदेवने
भक्तिपूर्वक नमस्कार; बालविभागना बधा
साथीओने यादी (साथे अनेक प्रश्नो लख्या छे;
तेना जवाब हवे पछी आपीशुं.)
जेतपुरथी मुकेश जैन लखे छे–“ नवा
वर्षनो नवो अंक हाथमां लेतां ज हर्ष
अनुभव्यो....नवा वर्षनी उत्तम बोणी
मळी...प्रवचननी मीठी प्रसादी पण मळी. ‘संतोनो
सिंहनाद’ गम्यो–के जे आत्माने जगाडे छे.
‘रत्नसंग्रह’ पुस्तक रत्नसमान छे. तेमांना एकेक
रत्न महान अने आत्माने राह देखाडनारा छे.
बालविभाग शरू थयो त्यारथी अमे चीवटपूर्वक
अभ्यास करीए छीए, ने अमृतरूपी वांचनथी
रोमरोममां धन्यता अनुभवाय छे.
(भाईश्री, आपना सूचनो लक्षमां लीधा
छे.....प्रश्नोना जवाब हवे पछी; पत्रो जरा टूंका
लखाय तो अमने विशेष अनुकूळता रहे.)