Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९४ आत्मधर्म :५:
(१४) धर्मनी क्रिया: युक्तिपूर्वक दलीलोथी ने शास्त्र आधारथी जड–चेतननी भिन्नता
समजावीने, धर्मनी क्रियानुं स्वरूप बतावतुं पुस्तक, जेनुं बीजुं नाम छे मोक्षनी क्रिया:
बीजी आवृत्ति किं: १–प०
(१प) अनुभवप्रकाश अने सत्तास्वरूप: (बंने संयुक्त पुस्तक) पं. दीपचंदजी शाह रचित
अनुभवप्रकाशमां अत्यंत रोचक शैलीथी आत्माना अनुभव माटे चानक चडे तेवुं
सरस वर्णन छे. नानकडुं सुंदर पुस्तक दरेक जिज्ञासुने उपयोगी छे; बीजुं पुस्तक
‘सत्तास्वरूप’ पं. श्री भागचंदजी छाजेड रचित छे, तेमां सर्वज्ञसत्तानी सिद्धि करीने ए
बताव्युं छे के सर्वज्ञदेवनो भक्त केवो होय? सर्वज्ञनी ओळखाण क्यारे थई कहेवाय?
ने जैनपणुं केवुं होय? आ पुस्तक दरेक जिज्ञासुने तत्त्वनिर्णय माटे उपयोगी छे. बंने
पुस्तकनी अनेक आवृत्ति छपाई गई छे. किंमत–एक रूपीओ.
(१६) सम्यग्ज्ञान दीपिका: क्षुल्लक धर्मदासजी रचित आ नानकडुं पुस्तक अत्यंत
सुगमशैलिथी, द्रष्टान्त अने चित्रो सहित स्वानुभवनी प्रेरणा आपे छे. दरेक जिज्ञासुने
आत्मभावना माटे उपयोगी छे. सचित्र पुस्तक किंमत १–प०
(१७) मोक्षशास्त्र: (गुजराती टीका संग्रह) आचार्य उमास्वामी रचित आ पुस्तक नानकडा
पण अर्थगंभीर ३प७ सूत्रोद्वारा जैनसिद्धांतनो सार समजावे छे. जैनोमां सर्वमान्य
अने नानामोटा सौने उपयोगी एवुं आ शास्त्र पाठशाळाओनुं पाठ्यपुस्तक छे; आ
शास्त्र उपर अनेक धूरंधर आचार्योए जे विशाळ टीकाओ रची छे; ते टीकाओना
सारनो संग्रह आ पुस्तकमां छे: दरेक अभ्यासीओने उपयोगी छे. आवृत्ति: त्रीजी पृ.
९१प किं. ४ हिन्दी आवृत्ति त्रीजी–पृ. ९०० मूल्य रूा. पांच.
(१८) समयसार प्रवचनो भाग: ४ (विगत माटे जुओ पुष्प नं. २ मां)
(१९)
मूलमें भूल: पं. श्री भगवतीदासजी रचित उपादान–निमित्तना ४७ दोहरा उपरनां
प्रवचनो आ पुस्तकमां छपाया छे. आ पुस्तके जैनसमाजमां उपादान–निमित्तनुं
स्वरूप समजवा माटे सरस जागृती करी छे. उपादान अने निमित्त ए बंने स्वतंत्र
होवा छतां, तेमने पराधीन मानवा ते तत्त्वनी मूळमां ज भूल छे. एम बतावीने,
सत्यस्वरूपनी समजणद्वारा ते भूल टाळवानुं आ पुस्तक बतावे छे. उपादान अने
निमित्त ए बंनेनी सामसामी अनेक दलीलोथी संवादरूपे होवाथी आ पुस्तकनी
शैली रोचक छे. हिंदी–गुजरातीमां घणी नकलो प्रगट थई चूकी छे.