रागथी जुदा शुद्धात्मस्वरूपना अनुभवरूप भेदज्ञानवडे जेणे संवर कर्यो छे, ते उग्र
आनंदरूप थाय छे–मोक्षने साधे छे. सम्यग्दर्शन थतां ज आत्मामां आनंद थयो ने संवर–निर्जरा
शरू थया.
उपयोगनी एकतारूप आस्रव तेने थतो नथी. ज्ञानीनी परिणति ज्ञान–वैराग्यमय थई गई छे,
तेमां हवे बंधन केम थाय? अहो! ते ज्ञानवैराग्यनुं कोई अद्भुत माहात्म्य छे के ज्ञानीने बंधन
थतुं नथी. उपयोगमां एकतारूप ज्ञान, अने रागथी भिन्नतारूप वैराग्य–आवा ज्ञान–
वैराग्यसहित शुद्धात्मानो अनुभव होय छे. ते पर्यायमां रागनो के कर्मनो प्रवेश थतो नथी.
कर्मनो उदय आवीने निर्जरी जाय छे पण बंधनुं कारण थतो नथी–एवुं अनुभवनुं सामर्थ्य छे.
धर्मीने ते राग साथे के सामग्री साथे जराय लागतुं–वळगतुं नथी, तेनाथी जुदी ज ज्ञानपरिणति
वर्ते छे. ते परिणति कर्मनो अभाव करी नांखे छे.
बंधन थतुं नथी, ते वखतेय तेनो उपयोग अलिप्त वर्ते छे.
चडतुं नथी; केमके अंदरमां शुद्धचिद्रूपना अनुभवरूपी मंत्र तेने मोजूद छे; ते मंत्र विषयोमां
सुखबुद्धिरूपी झेरने (मिथ्यात्वने) जरापण चडवा देतो नथी.