Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : महा : र४९४
नरके छे, अने पहेली नरक करतां बीजी, त्रीजी आदि सातमी नरके एक एकथी अनंतगणुं दुःख
छे. एवा अनंता दुःखनी प्रतिकूळतानी वेदनामां पडेलो, महाआकरां पाप करीने त्यां गयेलो,
तीव्र वेदनाना गंजमां पडेलो, छतां तेमां कोईवार कोई जीवने एवो विचार आवे के अरेरे!
आवी वेदना! आवी पीडा! एवा विचारो करतां स्वसन्मुख वेग वळतां सम्यग्दर्शन थई जाय
छे; त्यां सत्समागम नथी पण पूर्वे एकवार सत्समागम कर्यो हतो, सत्नुं श्रवण कर्युं हतुं अने
वर्तमान सम्यक् विचारना बळथी, सातमी नरकनी महातीव्र पीडामां पडेलो छतां, पीडानुं लक्ष
चूकी जईने सम्यग्दर्शन थाय छे, आत्मानुं वेदन थाय छे. सातमी नरकमां रहेला सम्यग्दर्शन
पामेला जीवने ते नरकनी पीडा असर करी शकती नथी, कारणके तेने भान छे के मारा
ज्ञानस्वरूप चैतन्यने कोई पर पदार्थ असर करी शकतो नथी. एवी अनंती वेदनामां पडेला पण
आत्मानो अनुभव पाम्या छे, तो सातमी नरक जेटली पीडा तो अहीं नथी ने? मनुष्यपणुं
पामीने रोदणां शुं रोयां करे छे? हवे सत्समागमे आत्मानी पिछाण करी आत्मानुभव कर.
आत्मानुभवनुं एवुं माहात्म्य छे के परिषह आव्ये पण डगे नहि ने बे घडी स्वरूपमां लीन थाय
तो पूर्ण केवळज्ञान प्रगट करे, जीवनमुक्त दशा थाय अने मोक्षदशा थाय; तो पछी मिथ्यात्वनो
नाश करी सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ते तो सुगम छे.
सिद्धना सन्देश
जेने साची श्रद्धा प्रगटे तेनुं आखुं अंतर फरी जाय, हृदयपलटो थई
जाय, अंतरमां उथलपाथल थई जाय, आंधळामांथी देखतो थाय; अंतरनी
ज्योत जागे तेनी दशानी दिशा आखी फरी जाय; जेने अंतरपलटो थाय तेने
कोईने पूछवा जवुं न पडे, तेनुं अंतर बेधडक पडकार मारतुं साक्षी आपे के
अमे हवे प्रभुना मार्गमां भळ्‌या छीए, सिद्धना संदेशा आवी चूकया छे, हवे
टूंका काळे सिद्ध थये छूटको, तेमां बीजुं कांई थाय नहि, फेर पडे नहि.
(–पू. बेनश्री–बेनलिखित समयसार–प्रवचनोमांथी.)