Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: महा : र४९४ आत्मधर्म : ५ :
जेम सूतर अने नेतरने मेळ खाय नहि तेम जेने आत्मानी ओळखाण करवी होय तेने
अने जगतने मेळ नहि खाय. सम्यग्द्रष्टिरूप सूतर अने मिथ्याद्रष्टिरूप नेतरने मेळ नहि खाय.
आचार्य देव कहे छे के हे बंधु! तुं चोराशीना कूवामां पड्यो छे, तेमांथी पार पामवा माटे गमे
तेटला परिषहो के उपसर्गो आवे, मरण जेटलां कष्टो आवे तोपण तेनी दरकार छोडीने, पुण्य–
पापरूप विकारभावनो बेघडी पाडोशी था, तो चैतन्यदळ तने जुदुं जणाशे. ‘शरीरादि तथा
शुभाशुभ भाव ए बधुं माराथी जुदुं छे ने हुं एनाथी जुदो छुं, पाडोशी छुं, एम एक वार
पाडोशी थई आत्मानो अनुभव कर.
साची समजण करीने नजीकमां रहेला पदार्थोथी हुं जुदो, जाणनार–देखनार छुं; शरीर,
वाणी मन ते बधां बहारनां नाटक छे, तेने नाटकस्वरूपे जो. तुं तेनो साक्षी छो, स्वाभाविक
अंतरज्योतिथी ज्ञानभूमिकानी सत्तामां आ बधुं जे जणाय छे ते हुं नहि पण तेने जाणनारो
तेटलो हुं–एम स्वतत्त्वने जाण तो खरो! अने तेने जाणीने तेमां लीन तो था! आत्मामां श्रद्धा,
ज्ञान अने लीनता प्रगट थाय छे तेनुं आश्चर्य लावी एकवार परद्रव्योनो पाडोशी था.
जेम मुसलमाननुं घर अने वाणियानुं घर नजीक–नजीक होय तो वाणियो तेनो पाडोशी
थई रहे छे पण ते मुसलमाननुं घर पोतानुं मानतो नथी? तेम तुं पण चैतन्यस्वभावमां ठरी
पर पदार्थोनो बे घडी पाडोशी था, आत्मानो अनुभव कर.
शरीर, मन वाणीनी क्रिया तथा पुण्य–पापना परिणाम ते बधुं पर छे. ऊंधा पुरुषार्थवडे
परनुं मालिकीपणुं मान्युं छे, विकारी भाव तरफ तारुं बहारनुं लक्ष छे, ते बधुं छोडी, स्वभावमां
श्रद्धा, ज्ञान अने लीनता करी, एक अंतर्मुहूर्त एटले बे घडी छूटो पडी चैतन्यमूर्तिने छूटो जो. ते
मोजने अंदरमां देखतां शरीरादिना मोहने तुं तुरत ज छोडी शकशे.
‘झटिति’ एटले झट दईने
छोडी शकीश. आ वात सहेली छे केमके तारा स्वभावनी छे. केवळज्ञान–लक्ष्मीने
स्वरूपसत्ताभूमिमां ठरीने जो, तो पर साथेना मोहने झट दईने छोडी शकीश.
त्रण काळ त्रण लोकनी प्रतिकूळताना गंज एक साथे सामा आवीने ऊभा रहे तोपण
मात्र ज्ञातापणे रहीने ते बधुं सहन करवानी शक्ति आत्माना ज्ञायक–स्वभावनी एक समयनी
पर्यायमां रहेली छे. शरीरादिथी भिन्नपणे आत्माने जाण्यो तेने ए परिषहोना गंज जरा पण
असर करी शके नहि एटले के चैतन्य पोताना वेपारथी जरा पण डगे नहि.
कोई जीवता राजकुमारने–के जेनुं शरीर कोमळ छे तेने जमशेदपुरनी अग्निनी भठ्ठीमां
एकदम नाखी दे अने तेने जे दुःख थाय तेना करतां अनंतगणुं दुःख पहेली