Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : महा : र४९४
सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ते तो सुगम छे
आत्माना अनुभवनी उत्तम प्रेरणा आपतुं आ प्रवचन
पू. बेनश्री–बेन द्वारा लिखित समयसार–प्रवचनोमांथी लीधुं छे.
भेदज्ञान माटेनी प्रेरणानो आ श्लोक छे:
अयि! कथमपि मृत्वा तत्त्वकौतूहली सन्
अनुभवभवभूर्तेः पार्श्ववर्ती मुहूर्तम्।
पृथगथ विलसंतं स्वं समालोक्य येन
त्यजसि झगिति मूर्त्या साकमेकत्वमोहम्।। २३।।
श्री आचार्य देव कोमळ संबोधनथी कहे छे के भाई! तुं कोई पण रीते महाकष्टे अथवा
मरीने पण तत्त्वोनो कौतूहली थई आ शरीरादि मूर्तद्रव्यनो एक मुहूर्त (बे घडी) पाडोशी थई
आत्मानो अनुभव कर के जेथी पोताना आत्माने विलासरूप, सर्व परद्रव्योथी जुदो देखी आ
शरीरादि मूर्तिक पुद्गलद्रव्य साथे एकपणाना मोहने तुं तुरत ज छोडशे.
मिथ्याद्रष्टिना मिथ्यात्वनो नाश केम थाय? अने ऊंधी मान्यता ने ऊंधा पाप अनादिनां
केम टळे? तेनो उपाय बतावे छे.
आचार्यदेव कडक संबोधन करीने कहेता नथी पण कोमळ संबोधन करीने कहे छे के हे
भाई? आ तने शोभे छे! कोमळ संबोधन करीने जगाडे छे के रे जीव, तुं कोई पण रीते–महाकष्टे
अथवा मरीने पण–मरण जेटला कष्ट आवे तोपण ते बधुुंं सहन करीने तत्त्वनो कौतूहली था.
जेम कूवामां कोशीयो मारी ताग लावे छे तेम ज्ञानथी भरेला चैतन्य कूवामां पुरुषार्थरूप
ऊंडो कोशियो मारी ताग लाव. विस्मयता लाव, दुनियानी दरकार छोड. दुनिया एकवार तने
गांडो कहेशे, भंगडभूत पण कहेशे. दुनियानी अनेक प्रकारनी प्रतिकूळता आवे तोपण तेने सहन
करीने, तेनी उपेक्षा करीने, चैतन्य भगवान केवा छे तेने जोवाने एक वार कौतुहल तो कर! जो
दुनियानी अनुकूळता के प्रतिकूळतामां रोकाईश तो तारा चैतन्य भगवानने तुं जोई शकीश नहि, माटे
दुनियानुं लक्ष छोडी दई अने तेनाथी एकलो पडी एकवार महान कष्टे पण तत्त्वनो कौतुहली था!