Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: महा : र४९४ आत्मधर्म : ३ :
परविषयो बे प्रकारना छे–शुभ, अशुभ: पापना भावमां तो कंटाळे छे ने मंदिर, भक्ति,
दया वगेरे शुभना भावमां पण लंबाता लंबाता छेवटे थाके छे, त्यांथी खसवानुं मन थाय छे. जो
ते शुभमां सुख होय तो त्यांथी खसवानुं मन केम थाय? अज्ञानी जीव शुभथी खसीने शुद्धमां
जतो नथी पण शुभथी खसीने पाछो अशुभमां जाय छे, एटले परतरफना विषयमां ज रहीने
शुभ ने अशुभमां ज उपयोगने भमाव्या करे छे; पण, ‘अत्यार सुधी परवलणमां रह्यो पण
क््यांयथी सुख अनुभवमां आव्युं नहि, माटे पर तरफना वलणमां सुख नथी पण स्व तरफना
अंर्तमुख अवलोकनमां ज सुख छे– अतीन्द्रियज्ञानमां ज सुख छे’ –एम निर्णय करीने जो स्व
तरफ वळे तो सिद्ध भगवान जेवा आत्माना सुखनो अनुभव प्रगटे, ने विषयोमांथी रुचि टळी
जाय. –आ दशानुं नाम धर्म छे.
हे भाई! छेवटे लांबे काळे पण तारे विषयोमां (–शुभ के अशुभमां) कंटाळीने तेमां
सुखनी ना पाडवी पडे छे, तो वर्तमानमां ज स्वभावना सुखनी हा पाडीने विषयोमां सुखनी ना
पाड ने! विषयोना लक्षे विषयोना सुखनी ना पाडे छे तेथी ते ‘ना’ टकती नथी, ने पाछो बीजा
ईन्द्रियविषयोमां ज तुं लीन थाय छे. जो स्वभावना अतीन्द्रिय सुखनी रुचिथी हा पाडीने ते
विषयसुखनी ना पाडे तो ते ‘हा’ अने ‘ना’ बंने यथार्थ टकशे, ने आगळ जतां अतीन्द्रिय
केवळ सुख प्रगटशे. ए रीते आत्मार्थीने पहेलेथी ज स्वलक्षे ईन्द्रिय तरफना वलणमांथी
आदरबुद्धि टळी जवी जोईए, ने अतीन्द्रिय सुखनी परम आदरपूर्वक श्रद्धा थवी जोईए, ते ज
अतीन्द्रिय सुख प्रगटवानो उपाय छे.
तमने खबर छे?
चांदो मोटो के सूरज?
चांदो ऊंचो के सूरज?
जवाब आवता अंके.