आगळ जतां छेवटे शुं परिणाम आवे छे? खावा–पीवा वगेरे कोईपण विषयमां छेवटे तो
कंटाळो ज आवे छे, ने ते छोडीने बीजा विषय तरफ उपयोग जाय छे. ए रीते, जो विषयोना
भोगवटामां अणगमो ज आवी जाय छे तो तुं समजी ले के तेमां खरेखर तारुं सुख हतुुंं ज नहि,
पण तें मात्र कल्पनाथी ज सुख मान्युं हतुं. जो खरेखर सुख होय तो ते भोगवतां भोगवतां कदी
कोईने कंटाळो आवे नहीं. जुओ, सिद्धभगवंतोने आत्मानुं साचुं सुख छे, तो तेमने ते सुख
भोगवतां अनंतकाळे पण कंटाळो आवतो नथी...आत्मिक सुखथी तेओ तृप्त–तृप्त छे.
मान्युं, एक लाडवो खाधो...बे खाधा, त्रण...चार...खाधा...छेवटे एम थाय छे के हवे बस, हवे
लाडवा खावामां सुख लागतुं नथी. तो समजी ले के पाछळथी जेमां सुखनो अभाव भास्यो तेमां
पहेलेथी ज सुखनो अभाव छे. ए रीते लाडवाना स्थाने कोईपण परविषय लईने विचार करतां
नक्की थशे के ए विषयोमां सुख नथी पण आत्मस्वभावमां ज सुख छे. ए स्वभावसुख नक्की
करीने तेनी हा पाड, ने विषयोमां सुखनी बुद्धि छोड.
आवतो नथी, ने विषयसुखोमां कंटाळो आव्या विना रहेतो नथी.