Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: महा : र४९४ आत्मधर्म : ९ :
जीवन छे. जेने रागनी रुचि छे–राग साथे उपयोगनी एकता छे तेने साचो वैराग्य होतो नथी,
ते तो रागमां ज लीन छे. राग अने ज्ञाननी भिन्नताना भेदज्ञानवडे ज साचो वैराग्य होय छे.
ने आवा वैराग्यवाळो जीव ज कर्मोथी छूटे छे.
“जीव रक्त बांधे कर्मने, वैराग्यप्राप्त मुकाय छे.”
–एमां आवा भेदज्ञानसहितना वैराग्यनी वात छे. एकला रागनी मंदता करीने वनमां
जईने रहे पण अंदर तो शुभरागने कल्याणनुं साधन मानीने तेमां एकताबुद्धि राखे तो ते
जीवने वैरागी कहेता नथी, ते तो रागी ज छे, रागमां ज लीन छे. अने जेणे शुद्धस्वरूपना
अनुभवपूर्वक रागथी पोतानी भिन्नता जाणी छे. एवा सम्यग्द्रष्टि जीव, बहारथी गृहवासमां
देखाय, राग पण थतो देखाय छतां, नियमथी वैरागी छे, रागमां तेनी परिणति मग्न नथी, तेनी
ज्ञानपरिणति रागथी जुदी जे जुदी ज वर्ते छे; रागना एक अंशने पण ज्ञानमां भेळवता नथी.
आ रीते तेनुं ज्ञान रागथी विरमेलुुंं छे. एटले धर्मीने ज्ञान अने वैराग्य बंने साथे ने साथे वर्ती
रह्या छे.
सम्यग्द्रष्टि क््यां वर्ते छे? –ते पोताना शुद्धस्वरूपना अनुभवमां ज वर्ते छे,
–तेमां ज पोतानुं अस्तित्व जाणे छे; बाह्य पदार्थोमां ते रहेता नथी, रागमां ते रहेता नथी,
तेनाथी तो भिन्न रहे छे, विरक्त रहे छे, तेमां एकरूप कदी थता नथी. –आवा ज्ञान–वैराग्यना
बळथी धर्मी जीवने निर्जरा थाय छे; अशुद्धपरिणति छूटती जाय छे ने शुद्धता थती जाय छे.
शुद्धस्वरूपना ज्ञान वगर एटले शुद्धात्माना अनुभव वगर साची वैराग्य– परिणति
होती नथी. ने ज्यां आवुं साचुं ज्ञान होय त्यां रागथी भिन्नतारूप वैराग्य अवश्य होय छे. माटे
सम्यग्द्रष्टि नियमथी ज्ञान–वैराग्य सम्पन्न होय छे. –ते शुं करे छे? शुद्धस्वरूपनो लाभ अने
परभावनो त्याग–एनो निरंतर अभ्यास भेदज्ञान वडे करे छे. शुद्ध स्वरूपना अनुभवनो
निरंतर अभ्यास करे छे. समयसारनाटकमां कहे छे के–
सम्यकवंत सदा उर अन्तर ज्ञानवैराग उभय गुण धारे।
जासु प्रभाव लखे निज लक्षण जीव अजीवदशा निरवारे।।
आतमको अनुभव करिके ह्वै थिर आप तरे अर ओरनि तारे।
साधी सुद्रव्य लहे शिवशर्म सु कर्मउपाधि व्यथा वमि डारे।। ७।।
जुओ, आवी सम्यग्द्रष्टिनी दशा छे. निजलक्षद्वारा ते जीव–अजीवनी भिन्नता करे छे.
अज्ञानथी जीव–अजीवनी एकतानी हठ हती–मिथ्यात्व हतुं, ते मटीने भेदज्ञान थयुं त्यां
परद्रव्यथी सर्वथा भिन्न एवी शुद्ध स्ववस्तुनो लाभ थयो. ते स्ववस्तुने