Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : महा : र४९४
रागथी अत्यंत भिन्न साधीने मोक्षसुखने पामे छे, त्यां कर्मबंधन सर्वथा छूटी जाय छे. ते पोते
तरे छे ने बीजा पात्र जीवोने पण तरवानुं निमित्त थाय छे. अने आवी भिन्नताना भान वगर
जीव दुःख पामे छे.
अरे जीव! तारा शुद्धस्वरूपना आनंदरसनो स्वाद लेवा निरंतर तेनो अभ्यास कर. अहा,
अनुभवरसनी खुमारीमां धर्मी जीव जगतथी परम उदास छे. आवा अनुभवरस वगर बहारनी
आशाथी अरे जीव! तुं घरघर भटक््यो ने दुःखी थयो. भगवान्! बहारनी आशा छोड ने अंतरमां
अनुभवना रसनी एवी खुमारी चडाव के ते रस कदी छूटे नहि. धर्मी जीवने भेदज्ञानना बळे
शुद्धस्वरूपना अनुभवनी अद्भूत खुमारी चडी गई छे, तेने रागथी अत्यंत भिन्नता वर्ते छे. –
आवी अनुभवदशा वगर निर्जरा के मोक्षमार्ग होय नहि. माटे कहे छे के हे जीवो! ज्ञान अने रागनी
भिन्नताना भान वडे शुद्धस्वरूपना अनुभवनो निरंतर अभ्यास करो.


सम्यग्द्रष्टि तो शुद्धात्माना अनुभवथी नियमथी ज्ञान–वैराग्य संपन्न होय छे, तेनी तो
परिणति रागथी छूटी पडी गई छे तेथी तेने बंधन थतुं नथी–एम कह्युं. हवे कोई मिथ्याद्रष्टि
जीव रागनी मीठासमां वर्ततो होवा छतां एम माने के मने पण बंधन थतुं नथी, –तो ते जीव
पापी छे. –भले कदाच शुभरागमां वर्ततो होय तोपण मिथ्याबुद्धिने लीधे तेने पापी ज कह्यो छे.
शुद्ध चैतन्यविषय–के जेनो स्वाद अत्यंत मधुर आनंदरूप छे–ते जेना अनुभवमां नथी
आव्यो तेने अवश्य ईन्द्रियविषयना भोगोमां सुखबुद्धि छे, अने ए ज पाप छे. धर्मीने तो
ईन्द्रियविषयोमांथी परिणति ज छूटी गई छे ने अंतरना अत्यंत मधुर चैतन्यस्वादना आनंदमां
एकाग्र थई छे; त्यां बाह्य भोगो के राग ए तो तेने महा रोगना उपसर्ग जेवा लागे छे. आवी
परिणतिने लीधे धर्मीने भोग वखते पण निर्जरा थाय छे, ने बंधन थतुं नथी. –पण ए तो
अंतरना शुद्ध अनुभवनुं जोर छे, एना परिणाम राग वगरना अत्यंत लूखा छे एटले ते बंधनुं
कारण थता नथी.
–पण जेनां परिणाममां शुद्धस्वरूपनो अनुभव तो छे नहि, ने रागमां लयलीनताथी
जेनां परिणाम चीकणां छे ते तो बीजा करोडो उपाय करे तोपण मिथ्यात्वादि पापथी बंधाय ज
छे, तेथी ते पापी छे. ते भले एम मानी ल्ये के हुं सम्यग्द्रष्टि छुं अने मने विषयभोगोथी पण
बंधन थतुं नथी. –पण अंदर मीठासनो रस छे ते मिथ्यात्व जरूर बंधनुं कारण थाय छे.
ज्ञानी तो चैतन्यना आनंदरूपी मीठा अमृतने पीए छे. अज्ञानी बाह्यमां सुख मानीने
ईन्द्रियविषयोरूपी झेर पीए छे. पीए झेर अने माने एम के हुं सुखी छुं, –ए तो भ्रान्ति छे.
भ्रान्तिथी एम माने के मने बंधन नथी– तेथी कांई तेनां