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तरे छे ने बीजा पात्र जीवोने पण तरवानुं निमित्त थाय छे. अने आवी भिन्नताना भान वगर
जीव दुःख पामे छे.
आशाथी अरे जीव! तुं घरघर भटक््यो ने दुःखी थयो. भगवान्! बहारनी आशा छोड ने अंतरमां
अनुभवना रसनी एवी खुमारी चडाव के ते रस कदी छूटे नहि. धर्मी जीवने भेदज्ञानना बळे
शुद्धस्वरूपना अनुभवनी अद्भूत खुमारी चडी गई छे, तेने रागथी अत्यंत भिन्नता वर्ते छे. –
आवी अनुभवदशा वगर निर्जरा के मोक्षमार्ग होय नहि. माटे कहे छे के हे जीवो! ज्ञान अने रागनी
भिन्नताना भान वडे शुद्धस्वरूपना अनुभवनो निरंतर अभ्यास करो.
सम्यग्द्रष्टि तो शुद्धात्माना अनुभवथी नियमथी ज्ञान–वैराग्य संपन्न होय छे, तेनी तो
जीव रागनी मीठासमां वर्ततो होवा छतां एम माने के मने पण बंधन थतुं नथी, –तो ते जीव
पापी छे. –भले कदाच शुभरागमां वर्ततो होय तोपण मिथ्याबुद्धिने लीधे तेने पापी ज कह्यो छे.
ईन्द्रियविषयोमांथी परिणति ज छूटी गई छे ने अंतरना अत्यंत मधुर चैतन्यस्वादना आनंदमां
एकाग्र थई छे; त्यां बाह्य भोगो के राग ए तो तेने महा रोगना उपसर्ग जेवा लागे छे. आवी
परिणतिने लीधे धर्मीने भोग वखते पण निर्जरा थाय छे, ने बंधन थतुं नथी. –पण ए तो
अंतरना शुद्ध अनुभवनुं जोर छे, एना परिणाम राग वगरना अत्यंत लूखा छे एटले ते बंधनुं
कारण थता नथी.
छे, तेथी ते पापी छे. ते भले एम मानी ल्ये के हुं सम्यग्द्रष्टि छुं अने मने विषयभोगोथी पण
बंधन थतुं नथी. –पण अंदर मीठासनो रस छे ते मिथ्यात्व जरूर बंधनुं कारण थाय छे.
भ्रान्तिथी एम माने के मने बंधन नथी– तेथी कांई तेनां