Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: महा : र४९४ आत्मधर्म : ११ :
चीकणां बंधन छूटी न जाय. जेलमां पुरायेलो ने बेडीथी बंधायेलो माणस मूर्खताथी एम माने के
हुं छूटो छुं–पण तेथी कांई ते जेलना बंधनमांथी छूटी न जाय. तेम चैतन्यनुं जेने भान नथी ने
मिथ्यात्वना चीकणाभावरूपी जेलमां पड्यो छे, ने विषयोमां सुखबुद्धिथी वर्ते छे, छतां भ्रान्तिथी
एम माने के मने कर्मबंधन थतुं नथी, –तो तेथी कांई ते जीव कर्मथी छूटी जाय नहि. मिथ्यात्वना
चीकणा परिणाम तो जरूर बंधनुं कारण थशे.
चैतन्यवस्तुनुं जेने वेदन नथी ते कर्मनी सामग्रीमां मुर्छाई जाय छे. ने जेणे चैतन्यसुखनो
स्वाद चाख्यो छे ते कर्मनी सामग्रीमां क््यांय मुर्छाता नथी, तेने तो ते रोग जेवी जाणे छे, माटे
तेने बंधन थतुं नथी. कर्मनी सामग्री एटले के पांच ईन्द्रियना विषयोनी सामग्री ते तो दुश्मने
ऊभी करेली सामग्री छे, –तेनो प्रेम धर्मीने केम होय? चैतन्यना प्रेम आडे धर्मीने तेनो प्रेम
स्वप्नेय थतो नथी, माटे तेने बंधन थतुं नथी–एम जाणवुं. एने तो अतीन्द्रियआनंदनो उल्लास
छे ने रागनो रंग ऊतरी गयो छे. रागनो जेने रंग छे, जेनो उपयोग राग साथे एकताथी
रंगायेलो छे ते तो कर्म सामग्रीमां मग्न छे एटले पापी छे, ने तेने कर्मबंधन थाय छे; –भले ते
कदाच शुभरागना आचरणमां मग्न होय तोपण कर्मसामग्रीमां ज मग्न होवाथी निन्द्य छे, तेने
बंधन थाय छे. –आम सम्यग्द्रष्टि अने मिथ्याद्रष्टिनी परिणतिमां जे मोटो भेद छे तेने धर्मी ज
जाणे छे. धर्मी–सम्यग्द्रष्टिने जे बंधन थतुं नथी ते तो तेनी अंदरनी अद्भुत ज्ञान–
वैराग्यपरिणतिनो प्रभाव छे, ज्ञान–वैराग्यनी अद्भुत शक्तिने लीधे तेने बंधन थतुं नथी.
आ अंकमां पहेलां पाने छपायेल श्लोक तत्त्वज्ञान–तरंगिणीना पहेला
अध्यायमां छे. श्री ज्ञानभूषणस्वामी रचितआ पुस्तकमां नाना–नाना १८ अध्याय
द्वारा शुद्धचिद्रूपनी वारंवार भावनाने पुष्ट करीने तेना ध्याननी प्रेरणा आपी छे,
अने ते सुगम छे एम बताव्युं छे. प्रतिपादनशैली घणी सुगम अने मधुर छे.
अने हवे साथेसाथे नीचेनो मंगलश्लोक वांचो अने ते श्लोक कया शास्त्रमां
हशे ते विचारो.–
(अर्थ सहित परिचय आवता अंकमां जुओ.)
चिदानन्दैकरूपाय जिनायः परमात्मने।
परमात्मप्रकाशाय नित्यं सिद्धात्मने नमः ।।१।।