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हुं छूटो छुं–पण तेथी कांई ते जेलना बंधनमांथी छूटी न जाय. तेम चैतन्यनुं जेने भान नथी ने
मिथ्यात्वना चीकणाभावरूपी जेलमां पड्यो छे, ने विषयोमां सुखबुद्धिथी वर्ते छे, छतां भ्रान्तिथी
एम माने के मने कर्मबंधन थतुं नथी, –तो तेथी कांई ते जीव कर्मथी छूटी जाय नहि. मिथ्यात्वना
चीकणा परिणाम तो जरूर बंधनुं कारण थशे.
तेने बंधन थतुं नथी. कर्मनी सामग्री एटले के पांच ईन्द्रियना विषयोनी सामग्री ते तो दुश्मने
ऊभी करेली सामग्री छे, –तेनो प्रेम धर्मीने केम होय? चैतन्यना प्रेम आडे धर्मीने तेनो प्रेम
स्वप्नेय थतो नथी, माटे तेने बंधन थतुं नथी–एम जाणवुं. एने तो अतीन्द्रियआनंदनो उल्लास
छे ने रागनो रंग ऊतरी गयो छे. रागनो जेने रंग छे, जेनो उपयोग राग साथे एकताथी
रंगायेलो छे ते तो कर्म सामग्रीमां मग्न छे एटले पापी छे, ने तेने कर्मबंधन थाय छे; –भले ते
कदाच शुभरागना आचरणमां मग्न होय तोपण कर्मसामग्रीमां ज मग्न होवाथी निन्द्य छे, तेने
बंधन थाय छे. –आम सम्यग्द्रष्टि अने मिथ्याद्रष्टिनी परिणतिमां जे मोटो भेद छे तेने धर्मी ज
जाणे छे. धर्मी–सम्यग्द्रष्टिने जे बंधन थतुं नथी ते तो तेनी अंदरनी अद्भुत ज्ञान–
वैराग्यपरिणतिनो प्रभाव छे, ज्ञान–वैराग्यनी अद्भुत शक्तिने लीधे तेने बंधन थतुं नथी.
द्वारा शुद्धचिद्रूपनी वारंवार भावनाने पुष्ट करीने तेना ध्याननी प्रेरणा आपी छे,
अने ते सुगम छे एम बताव्युं छे. प्रतिपादनशैली घणी सुगम अने मधुर छे.
परमात्मप्रकाशाय नित्यं सिद्धात्मने नमः ।।१।।