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कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
–एम बताव्युं. हवे मरण पछी एटले के देहना वियोग पछी पण आत्मानुं अस्तित्व टकी रहे छे
–ए वात द्रष्टान्तपूर्वक गाथा १०१ मां बतावे छे–
तथा जागरद्रष्टेपि विपर्यासाविशेषतः।।
देखे छे, स्वप्नमां जे नाश देख्यो ते तो विपर्यास अने भ्रमणा छे. तेम जागृत– दशामां पण देहना
नाशथी पोतानो (आत्मानो) नाश थवानुं अज्ञानी माने छे ते पण स्वप्नदशानी जेवो ज
विपर्यास अने भ्रमणा छे, खरेखर आत्मानो नाश थतो नथी; जेम जागृतदशामां पोते एवो ने
एवो छे तेम देहथी भिन्न चैतन्यद्रष्टिथी जुए तो आत्मा बीजा भवमां अथवा शरीररहित
सिद्धदशामां एवो ने एवो नित्य बिराजमान छे. देहना संयोगथी आत्मानी उत्पत्ति अने देहना
वियोगे आत्मानुं मरण मानवुं ए भ्रमणा छे. आत्मा देहथी जुदो उपयोगलक्षणवाळो छे; देहनी
उत्पत्तिथी तेनी उत्पत्ति थई नथी तेमज देहना वियोगे तेनुं मरण थतुं नथी. जन्म अने मृत्यु
वगरनो सत्स्वरूप आत्मा छे.
स्वप्नमां कोईए जोयुं के ‘हुं मरी गयो. ’ अने पछी ते जागीने बीजाने कहे के ‘भाई! हुं तो मरी
गयो छुं, ’ –तो लोको तेने मूरख ज गणे. एला! तुं जीवतो जागतो ऊभो छो ने कहे छे के हुं
मरी गयो? जेम स्वप्नानी तेनी वात ए भ्रमणा छे; तेम देहना छूटवाथी कोई कहे के आत्मा
मरी गयो. –तो ज्ञानी कहे छे के अरे मूरखा!