Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : महा : र४९४
परम शांतिदातारी अध्यात्मभावना
लेखांक–प९ (अंक र९१ थी चालु)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामीरचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
देहथी भिन्न निजस्वरूपमां उपयोगने जोडनार मुनिओने कदी दुःख नथी –ए वात
बतावी; अने आत्मा पृथ्वीआदिथी उत्पन्न थयेलो पदार्थ नथी पण असंयोगी स्वयंसिद्ध वस्तु छे
–एम बताव्युं. हवे मरण पछी एटले के देहना वियोग पछी पण आत्मानुं अस्तित्व टकी रहे छे
–ए वात द्रष्टान्तपूर्वक गाथा १०१ मां बतावे छे–
स्वप्ने द्रष्टे विनष्टेऽपि न नाशोस्ति यथात्मनः।
तथा जागरद्रष्टेपि विपर्यासाविशेषतः।।
जेम स्वप्नमां कोईए जोयुं के मारो नाश थई गयो, मारुं शरीर छेदाई गयुं,
–पण स्वप्नमां देखेली ते वात साची नथी, जागृत थतां ज पोते–पोताने जीवंत एवो ने एवो
देखे छे, स्वप्नमां जे नाश देख्यो ते तो विपर्यास अने भ्रमणा छे. तेम जागृत– दशामां पण देहना
नाशथी पोतानो (आत्मानो) नाश थवानुं अज्ञानी माने छे ते पण स्वप्नदशानी जेवो ज
विपर्यास अने भ्रमणा छे, खरेखर आत्मानो नाश थतो नथी; जेम जागृतदशामां पोते एवो ने
एवो छे तेम देहथी भिन्न चैतन्यद्रष्टिथी जुए तो आत्मा बीजा भवमां अथवा शरीररहित
सिद्धदशामां एवो ने एवो नित्य बिराजमान छे. देहना संयोगथी आत्मानी उत्पत्ति अने देहना
वियोगे आत्मानुं मरण मानवुं ए भ्रमणा छे. आत्मा देहथी जुदो उपयोगलक्षणवाळो छे; देहनी
उत्पत्तिथी तेनी उत्पत्ति थई नथी तेमज देहना वियोगे तेनुं मरण थतुं नथी. जन्म अने मृत्यु
वगरनो सत्स्वरूप आत्मा छे.
आत्मा स्वतंत्र सत् वस्तु छे. सत्नो सर्वथा नाश न थाय, ने सत् सर्वथा नवुं न ऊपजे.
पण सत् सत्पणे नित्य टकीने तेनी पर्यायमां उत्पाद–व्ययरूप परिवर्तन थया करे छे. जेम
स्वप्नमां कोईए जोयुं के ‘हुं मरी गयो. ’ अने पछी ते जागीने बीजाने कहे के ‘भाई! हुं तो मरी
गयो छुं, ’ –तो लोको तेने मूरख ज गणे. एला! तुं जीवतो जागतो ऊभो छो ने कहे छे के हुं
मरी गयो? जेम स्वप्नानी तेनी वात ए भ्रमणा छे; तेम देहना छूटवाथी कोई कहे के आत्मा
मरी गयो. –तो ज्ञानी कहे छे के अरे मूरखा!