अनुभवमां आवे छे. आवा अनुभवरूपे आत्मा परिणम्यो त्यारे आत्मा आत्मारूपे प्रसिद्ध थयो.
रागादिने तो मूर्त पण कह्या छे, ते अमूर्त–आत्मस्वभावथी जुदा छे ने मूर्तकर्मना संबंधे थयेला छे
माटे तेने मूर्त कह्या, ने अवधिज्ञानना मूर्तविषयमां गण्या. भगवान आत्माने स्वभावद्रष्टिथी
जुओ तो, अत्यारे कर्मसंबंधनी वच्चे रहेवा छतां पण ते पोताना अमूर्तस्वभावे ज परिणमे छे.
अमूर्तपणुं तेना द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां छे; अने ते ज आत्मा छे; मूर्त के मूर्तना संबंधे थयेला
विकारी भावो ते खरेखर आत्मा नथी. अत्यारे द्रव्य–गुण अमूर्त ने पर्याय मूर्त–एवुं कांई नथी.
द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेथी एकाकार आत्मा अमूर्तपणे अनुभवमां प्रसिद्ध थाय छे. मूर्त एवा देह
सामे (के रागादि सामे) जोये अमूर्त आत्मानी खरी ओळखाण थती नथी. अत्यारे आत्माने
मूर्त माने ने पछी अमूर्तपणुं (सिद्धदशा) प्रगटे एम बने नहीं. अमूर्तस्वभाव छे तेनी
कबुलातथी ज साक्षात् अमूर्तपणुं प्रगटे छे ने पर्यायमांथी कर्मनो संबंध छूटी जाय छे. अत्यारे
आत्मा कर्मना संबंधवाळो छे–देहवाळो छे–मूर्त छे–विकारी छे एम ज अनुभव्या करे तो शुद्ध
आत्मा अनुभवमां क्यारे आवशे?
भारतना अने दुनियाना भोळा लोको गपगोळानी कल्पित आगाहीओथी दोरवाईने
भडकामणी वातो फेलावाय छे. –ताजेतरमां घणी वखत एवी अफवाओ ऊडी–जे संपूर्ण असत्य
ज सिद्ध थई. जीवो एक थोडा कल्पित भयथी बचवा केवी चिन्ता करे छे! पण संसारना जन्म–
मरणथी रहित, अने ज्यां कोईपण उपद्रव पहोंची न शके एवा अचिंत्यशक्तिमय शाश्वत
सिद्धपदनुं चिन्तन केम नथी करता! सन्तो कहे छे के हे जीव! भविष्यनी व्यर्थ चिन्तामां तारा
वर्तमानने भूली न जा. वर्तमान जेनुं उत्तम छे तेनुं भविष्य पण उत्तम ज होय छे. अत्यारना
माणसो ज्योतिषना नामे जे आगाहीओ करे छे ते लगभग कल्पित गपगोळा सिवाय कांई ज
होतुं नथी. ज्यां आत्मानी आस्तिकता छे, ज्यां आलोक–परलोकनी श्रद्धा छे, ज्यां सर्वज्ञनो
विश्वास छे अने ज्यां आत्मिक जीवननो उल्लास छे त्यां एवा कोई गप्पाष्टकनो भय होतो
नथी. ज्यां साचो प्रलय थाय तोपण भय नथी त्यां कल्पित गपगोळानो तो भय केम होय!