Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: महा : र४९४ आत्मधर्म : २९ :
जाण ने रागनुं स्वामीपणुं छोड; परनुं स्वामीपणुं छोड. पोतानो जे स्व–भाव छे ते ज पोतानुं
‘स्व’ छे, तेनो ज आत्मा स्वामी छे. ज्ञानमय निर्मळ द्रव्य–गुण–पर्याय ते आत्मानुं स्व छे ने
धर्मी तेनो स्वामी छे. ए सिवाय बीजानुं स्वामीपणुं धर्मीना ज्ञानमांथी–श्रद्धामांथी ऊडी गयुं छे.
जेनुं स्वामीपणुं छे ते भावरूपे ज तेना उत्पाद–व्यय–(–अभावभाव, ने भावअभाव) थाय छे.
चेतनना उत्पाद–व्यय कांई अचेतनरूपे न थाय, चेतनना उत्पाद–व्यय चेतनरूप ज थाय. –आवो
वस्तु स्वभाव छे. तेम ज्ञानना उत्पाद–व्यय ज्ञानरूप ज थाय, रागरूप न थाय. अहा, आवा
तारा ज्ञानवैभवनी एकवार होंशथी हा तो पाड. ‘हा’ पडतां तारुं परिणमन तेवुं थई जशे. तारा
आत्मानी शक्ति अपार छे–तेनी हा पाडीने तुं परमात्मा बनी जा.
वाह! अंदरथी श्रद्धाना रणकार करतो आत्मा जागी जाय–एवो आ वीरमार्ग छे. जेम
रणे चडेला राजपूतनी वीरता छूपे नहि, तेम चैतन्यनी साधनाना पंथे चडेला ने
वीरप्रभुना मार्गे वळेला धर्मात्मानी वीरता छानी रहे नहि; एनो वैराग्य, एनी श्रद्धानुं
जोर, एनो स्वभावनो प्रेम, एनो आत्मानो उत्साह–ए बधुं मुमुक्षुथी छानुं न रहे.
ज्ञानीनी दशा खरेखर अद्भुत होय छे.
मुश्केली अने उद्यम
प्रश्न:– मुश्केल कार्य पार पाडवानो उपाय?
उत्तर:– भाई, कोई कार्य तने मुश्केल लागे तो तेनो अर्थ (तेनो उपाय) एवो नथी के
तेनाथी डरीने तारे पाछुं हठवुं! परंतु तेने माटे तीव्र उत्साहथी उद्यम करवो ते तेनी सफळतानो
उपाय छे. उत्साहनुं बळ मुश्केल कार्यने पण सुगम बनावी दे छे. ने जेमां उत्साह होय ते कार्य
कदी अशक्य लागतुं नथी. राजा रामने मोटो समुद्र ओळंगीने लंकामां जवानुं अशक््य न लाग्युं.
उत्साहनुं बळ मुश्केल कार्यने पण थोडा ज समयमां पार पाडे छे.
रे जीव! ‘आ कार्य मुश्केल छे’ एनो अर्थ एवो नथी के तारे ते कार्य करवानुं ज मांडी
वाळवुं. पण मुश्केल छे एटले तेने माटे तुं वधारे उद्यम करजे–एम तेनो अर्थ छे. साचा उद्यमीने
मुश्केली नडती नथी. आत्माना उत्साहपूर्वक साचो उद्यम करनार आत्मकार्यने अवश्य साधे छे.